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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वीरभाण तो दान थी लाघी लीला ऋद्धि ।
उदेभाण सेवा करी, साधु तणी मन सुद्धि । इससे स्पष्ट है कि वीरभान ने दान से और उदयभान ने साधुसेवा से मनःशुद्धि लाभ किया और महामुनि हो गये।
धन धन वीरभाण उदेभाण मुनीवरु नाम थकी विस्तार ।
माहा मुनीसर नां गुण गावतां, पामीजे भवपार । यह रचना विक्रमचरित्र पर आधारित है, यथा -
विक्रमचरित्र थकी अ उधर्यो सरस कथा रस जोय । रचनाकाल --- अरज छे रे कवियण माहरी, थे छो चतुर सुजाण;
माहरी शोभा वधस्ये तुम थकी, वाच्यां सरस बखाण । सतर पसताले संवत्सरे, विजयादसमी सोमवार ।
पूरण रास कर्यो मे तिण दिने, वा जयजयकार । कवि ने उपरोक्त गुरु परंपरा बताकर अंत में अपना नाम कुशलसागर बताया है -
तेहनो शिष्य सुविनीत छे, कुशलसागर गणी जाण ।' केशवदास ने 'शीतकार के सवैया' (६ सवैया छंद) नामक हिन्दी रचना भी की है। ये हिन्दी के प्रसिद्ध आचार्य कवि केशवदास से भिन्न हैं । इनका पूर्ण विवरण जैन गुर्जर कवियों में देखा जा सकता है। उत्तमचंद कोठारी (जलगाँव) ने अपनी सूची में इनकी एक रचना 'नेमिराजुल बारहमास सं० १७२६ का उल्लेख किया है जिसकी प्रति दिगम्बर जैन छोटा मंदिर में उपलब्ध है। इस प्रकार इनकी चार कृतियों का पता चल पाया है जिनके आधार पर ये कुशल कवि प्रतीत होते हैं।
(श्रीधर) केशवऋषि- लोकागच्छीय रूपसिंह के शिष्य बताये गये हैं । इनकी गद्य रचना दशाश्रुतस्कंध बालावबोध सं० १७०९ का उल्लेख मिलता है ।' इनकी एक रचना साधु वंदना बताई गई है जिसके १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३६६-६९
और ३५४ प्र० सं०, भाग ३ पृ० १३२८ और १३३३ प्र० सं० । २. वही, भाग ५ पृ० २२ न० सं० । ३. वही, भाग २ पृ० ५९०, भाग ३ पृ० १६२४ प्र० सं० और भाग ४
पृ० १६८-१६९ न० सं० ।
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