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खुशालचन्द काला
मै विनती करहुँ त्रिभुवनपति, मेरो कारिज सारो जी
चंद खुस्याल सरन चरनन की सो भवपार उतारो जी।' चौबीस स्तुतिपाठ में स्तुतियाँ भक्तिभावपूर्ण हैं । कवि प्रभु के प्रति अपना प्रेमभाव व्यक्त करता हुआ लिखता हैतुम सम अवरज को नहीं प्रभु शिवनायक सुखधाम; अविनासी पद देत हो प्रभु फिर नहीं जग सों काम । दाता लषि मै जाचियो जी कीजे मोहि हूं पार, भव दुष सौ न्यारौ रहौं प्रभु राषो सरण अधार । चंद कर या विनती जी सूणिज्यौ त्रिभवन राई, जन्म जन्म पाऊं सही प्रभु तुम सेवा अधिकाई ।
यह संभवनाथ की विनती है जो दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर बड़ौत के ज्ञानभण्डार (गुटका नं० ४७) में सुरक्षित है। उत्तरपुराण भाषा (सं० १७८९ मगसिर सुदी १०) की प्रशस्ति के ५३ पद्यों में खुशालचंद का परिचय है ।
धन्यकुमारचरित्र सं० १७८१ के पश्चात् की कृति प्रतीत होती है। यह ब्रह्म नेमिदत्त के धन्यकुमार चरित पर आधारित है। पाँच सर्गों में यह रचना पूर्ण हुई है। इसमें धन्यकुमार का चारित्रिक संघर्ष प्रमुखता पूर्वक चित्रित है। दोहा चौपाई छंदों में रचित यह एकार्थ काव्य है । इसकी भाषा सरल किन्तु प्रवाह पूर्ण है। यशोधर चरित भाषा (१७८१ कार्तिक शुक्ल ६) इसकी १७९६ कार्तिक शुक्ल पडिवा, शनिवार की कुशलो कृत प्रतिलिपि उपलब्ध है।४।।
पद्मपुराण की सूचना तो ग्रंथसूची में है किन्तु कोई विवरण या उद्धरण आदि नहीं है। उक्त विवरण से यह ज्ञात होता है कि श्री काला द्वारा रचित साहित्य गुण और परिमाण दोनों ही दष्टियों से समृद्ध है और वे १८वीं शती के अच्छे कवियों में सम्मानित स्थान के अधिकारी हैं। १. डॉ० प्रेमसागर जैन हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० ३३४-३३५ २. वही ३. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल और अनूपचन्द-राजस्थान के जैन शास्त्र ___भंडारों की ग्रंथसूची भाग ४ पृ० १४५ । ४, वही पृ० १९१ । ५. वही पृ० १४९ ।
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