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गुणविलासं रचना जैसलमेर में पूर्ण थी।' इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है
अब मोहि तारो दीनदयाल,
सबही मत में देषे जिततित, तुमही नाम रसाल। यह रचना राग देवगांधार में निबद्ध है। कवि संगीतज्ञ भी है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ राग धन्यासी में निबद्ध है, यथा
संवत सतर सताणवै वरसे, माघ सुकल दुतीया अ, जेसलमेर नयर में हरषे, करि पूरन सुख पाये। पाठक श्री सिधिवरधन सद्गुरु, जिहिं विधि राग बताये, गुणविलास पाठक तिहिं विधि सौं श्री जिनराज मल्हा ।
इहि विधि चौबीसे जिन गाओ । इस कृति के चौबीस स्तव विभिन्न रागरागनियों में बँधे हैं। यह 'चौबीसी बीसी संग्रह' पृ० ४९७-५०७ पर प्रकाशित है।
आपने समयसुंदर कृत कल्पसूत्र पर कल्पलता नामक टीका की प्रति सं० १७६५ में शुद्ध की थी। सिद्धिविलास नाम के भी एक कवि सिद्धिवर्द्धन के शिष्य बताये गये हैं जिन्होंने सं० १७९६ माघ शुक्ल १० को चौबीसी लिखी । पता नहीं कि ये दूसरे कवि हैं या गुणविलास का ही दूसरा नाम सिद्धिविलास भी था। इसका निश्चय दोनों 'चौबीसी' का पाठावलोकन करके ही किया जा सकता है। इनका एक नाम गोकुलचन्द भी था, सिद्धिविलास भी हो सकता है।
गुणसागर-आपकी एकमात्र रचना 'चंदनबाला चौपाई' सं० १७२४ का उल्लेख मिलता है पर इसका विवरण-'उद्धरण अनुपलब्ध है।
गौडीदास--तपागच्छीय श्रावक कवि थे। इनकी रचना नवकार रास अथवा राजसिंह राजवती रास (सं० १७५५ आसो शुक्ल १०, १. अगर चन्द नाहहा--परंपरा प० ११० । २. मोहन लाल दलीचन्द देसाई---जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ५८४ और
भाग ३ १० १४६९ (प्र० सं०)। ३. वही भाग ५ पृ० ३५५-३५६ (न० सं०)। ४. वही भाग २ पृ० २२८ (प्र० सं०) और भाग ४ पृ० ३४६ (न० सं०)।
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