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खेतल-खेताक अथवा खेता
चित्तौड़ गजल (६३ कड़ी, सं० १७४८ श्रावण कृष्ण १२) आदि -- चरण चतुर्भुज लाइ चित ठीक करे चित्त ठौड़,
च्यारू दिसि चहुं चक्कर में, आखो गढ़ चित्तौड़। गढ चित्तौड़ है वंका कि मानुं समंद मैं लंका कि,
वेडछ पूर तल बहतीक, अर गंभीर भी रहती क । रचनाकाल खरतर जती कवी खेताक, आख मौजस्यू अताक,
संवत सतरै सै अडताल, श्रावण मास ऋतुवरसाल ।
विधि पख बारमी तारीख, कीनी गजल पठीओ ठीक ।' यह गजल फार्वस गुजराती सभा त्रैमासिक वर्ष ५ अंक ४ में प्रकाशित है।
उदेपुर गजल (८० कड़ी सं० १७५७ मागसर वदी) आदि -- जपुं आदि इकलिंग जी नाथ दुवारै नाथ,
गुण उदीयापुर गावतां, संता करो सनाथ । इसमें एकलिंग और नाथद्वारे के नाथ (श्रीकृष्ण) की वंदना है। रचनाकाल संवत सत्तर सत्तावन, मिगसर मास धुरि पख धन्न,
कीन्हीं गजल कौतुक भाज, लायक सुनउ जसु मुख लाज। इसमें उदयपुर के राणा अमरसिंह द्वितीय और उनके द्वारा निर्मित जयसमुद्र ताल का वर्णन है । कवि ने अन्त में लिखा है
फते जध हर पूजइ रिधू, अमरसिंह जी राना, उदयापुर ज्युं अनूप, अजब कायम ठमठाना । वाडी तालाब गिर बाग वन, चाक्रवत्ति ढुलते चमर अनभंग जंग कीरति अमर, असरसिंह जुग जुग अमर । खरतर जती कवी खेताक, आखै मौजस्यू ओताक,
राणा अमर कायम राज, कीर्ति पसरी संपदा पाज ।' यह गजल 'भारतीय विद्या' वर्ष १ अंक ४ में प्रकाशित है। इनकी एक अन्य रचना 'जैनयती गण वर्णन' ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में छपी है। यह रचना 'खेतसी' के नाम से छपी है। इस प्रकार इनका १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग ३ १० १६६९
. प्र० सं० और भाग ५ पृ० ६९-७० न० सं० । २. वही ३. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह- (जैनयती गुण वर्णन) पृ० २६० ।
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