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खीम मुनि
किसी अज्ञात कवि ने खिमऋषि पारणां (८३ कड़ी सं० १७८२ से पूर्व) लिखी है जिससे ज्ञात होता है कि खिम ऋषि ने सात वर्ष तक गुरु की गहन सेवा की, सत्संग एवं विद्याध्ययन किया तत्पश्चात् कठिन तपश्चर्या की, यथा --
नेऊ वरस पुरुं आइ, वरस त्रीसमइ संयम ठाइ, _ सात वरस गुरु सेवा कीद्ध पछइ अभिग्रह तपसुप्रसिद्ध । इसके प्रारम्भ में पारणा की विधि तथा पारणा में ग्रहण की जाने वाली वस्तुओं का उल्लेख है, यथा
कांग कोद्रव कुलथी जाणइ, करबउ कइर ते बखाणइ ।
कपूरीआं कुठवड़ी देइ, ते खिम ऋषि पारणा करेइ।' कांग, कोदो, कुलथी बड़े मोटे अन्न हैं जिनका अब उत्पादन भी प्रायः कृषक नहीं करते न खाते हैं। इसलिए यह पारणा एक कठिन कार्य है।
खुशाल ---आपकी एक रचना 'नेमिबारमासा ( सं० १७९८ भाद्र ११ गुरु ) का पता चला है जो प्राचीन मध्यकालीन बारमासा संग्रह भाग १ में छपी है जो चंद खुशाल के नाम से छपी है। लगता है कि खुशालचन्द की जगह चन्द खुशाल हो गया है। खुशालचन्द काला नामक प्रसिद्ध कवि हो गये हैं पता नहीं यह किसकी रचना है ? इसका उद्धरण उपलब्ध न होने से अनिश्चय की स्थिति है।२ नाम से ही रचना का विषय और काव्य विधा का ज्ञान हो जाता है। इससे अनुमान होता है कि इसमें राजुल के विप्रलंभ भाव का वर्णन होगा।
खुशालचन्द काला.. काला गोत्रीय खुशालचन्द के पिता का नाम सुंदरदास और माता का नाम सुजोनदे था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके जन्म स्थान जयसिंहपुरा (जहांनाबाद) में हुई। बाद में ये भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति के साथ सांगानेर गए और वहीं लक्ष्मीदास चांदवाड से जैन शास्त्रों का अभ्यास किया। इसकी अधिकतर रचनायें १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई ---जैन गुर्जर कविओ भाग ३ - पृ० १५३२
प्र० सं०, भाग ५ प ० ३१९-३२० (न० सं०)। २. वही, भाग ३ पृ० १४६८-६९ प्र० स० और भाग ५ पृ० ३६० (न०सं०)।
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