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क्षेमहर्ष
इसमें १२ ढालों में इनके पूर्वभव की कथा का वर्णन है और अन्त में इनके संयम लेने का प्रसंग उल्लिखित है । इसके अलावा 'पुण्यपाल श्रेष्ठि चौपई' ( पद्य ३५१ सजावलपुर ) और 'पार्श्वनाथ स्तवन' ( ७४ गाथा ) का भी उल्लेख मिलता है । इन रचनाओं का विवरण - उद्धरण नही मिल पाया ।
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खरगसेन / खंगसेन - इनकी एक रचना त्रिलोकदर्पण कथा सं० १७१३ का उल्लेख मिला है जिसका विषय लोकविज्ञान बताया गया है । श्री कामताप्रसाद जैन ने इनका नाम खरगसेन लिखा है और बताया है कि आप लाभपुर (लाहौर) में रहते थे । ये जैन श्रावक नियमों के अच्छे ज्ञाता थे । इन्होंने जिनेन्द्र भक्ति से प्रेरित होकर वहीं 'त्रिलोक दर्पण' की रचना की थी जिसमें तीनों लोकों का वर्णन करते हुए जिन चैत्यों का वर्णन किया है । आदिपुराण, उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण और त्रिलोकसार का अध्ययन करके कवि ने यह स्वतन्त्र रूप से ग्रंथ निर्मित किया है । उस समय आगरे में चतुर्भुज वैरागी नामक प्रसिद्ध विद्वान् थे जो प्रायः लाहौर आया करते थे, कवि ने जैन सिद्धान्त का ज्ञान उनसे भी प्राप्त किया था और यह रचना करके कवि को बड़ा आत्मतोष हुआ था । कवि इसे ' मुक्ति स्वयंवर की जयमाल' कहते हैं । रचना साधारण है, पंजाब में रची जाने पर भी भाषा में पंजाबीपन नहीं के बराबर है ! कुछ नमूने देखिये
सकल मनोरथ पूरे भये, अलग रूप है जैसो थए । जैसो दम पायो संतोष, तैसो सब कोई पावौ मोष । रचनाकाल—संवत्सर विक्रम तैं आदि सत्रह से तेरह सुषस्वाद ।
चैत्र सुकुल पंचमी प्रमाण, यह त्रिलोकदर्पण सुपुराण । रच्यौ बुद्धि अनुसार प्रमाण, देषि ग्रंथ पाई विधिजाण, अपणौ आव सफल कर लियौ, बोधबीज हृदय में कियो चतुर्भुज वैरागी का उल्लेख कवि ने इन पंक्तियों में किया है
चतुरभोज वैरागी जाण, नगर आगरे मांहि प्रमाण । तिन बहुतो कियो उपगार, दरव सरूप दिए भण्डार ।
१. अगरचन्द नाहटा -परंपरा पृ० १०६ ।
२. सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल, अनूपचन्द राजस्थान के शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ सूची भाग ३ पृ० ९२ .
३. श्रीकामताप्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० १५४-१५५
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