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केशर विमलं
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केशर विमल - तपागच्छ के शांतिविमल आपके गुरु थे । केसरविमल के शिष्य दानविमल ने अपनी गुरुपरम्परा बताते हुए कहा है कि वह तपागच्छीय आनन्द विमल > विजयविमल > वानरर्षि गणि> आनंदविजय > हर्ष विमल > शांतिविमल > केशर विमलका शिष्य है । मोहनलाल दलीचंद देसाई ने भी इन्हें शांतिविमल का शिष्य बताया है ।' लेकिन कविकृत सूक्तमाला की साक्षी से वह कनकविमल का शिष्य और शांति विमल का सहोदर सिद्ध होता है । सूक्तमाला में कवि ने लिखा है
विख्यातास्तद्राज्ये, प्राज्ञा श्री शांतिविमल नामानि, तत्सोदरा वभूवुः प्रज्ञो श्री कनक विमलाख्या, तेषामुभौ विनेयौ, विद्वत्कल्याणविमल इत्याद्य, तत्सोदरो द्वितीय केशर विभाभिधोवरजः ।
इनकी दो रचनाओं का विवरण प्राप्त है । एक है 'सूक्तिमाला अथवा सूक्तिमुक्तावली' सं० १७५४ जिसका रचनाकाल कवि ने संस्कृत में लिखा है, यथा
वे देंद्रियषिचंद्रे (सं० १७५४) प्रमिते श्री विक्रमागछते वर्षे, अग्रंथी सूक्तमाला, केशर विमलेन विबुधेन ।
इसका प्रारम्भ भी संस्कृत श्लोक में ही है, यथा
सकल सुकृत वल्लीवृन्द जे मूर्तिमाला, जिनमनसि निधाय श्री जिनेन्द्रस्य मूर्ति । ललितवचन लीला लोकभाषा निबद्धैरिह, कतिपय पद्ये सूक्तमाला तनोमि ।
कवि ने अपनी भाषा को 'लोकभाषा' कहा है जिसका तात्पर्य तत्कालीन प्रचलित काव्यभाषा की लोकरूढ़ शैली से है । इसके प्रारम्भिक दो श्लोक ही संस्कृत में है जिनसे उनके संस्कृत ज्ञान का अनुमान हो जाता है पर आगे के ३७ छंदों की भाषा लोकभाषा ही है । भाषा का नमूना देखने के लिए सूक्तिमाला के अन्त की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
१. मोहनलाल दलीचन्द दे गई-- जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ४४२-४५, भाग ३ पृ० १३८७ प्र० सं० ।
२. वही भाग ५
पृ० १३४- १३५ न० सं० ।
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