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आणंदवर्द्धन
की द्योतक हैं । कवि संगीत का जानकार है और रचनाओ में शास्त्रीय रागों तथा दोहा सवैया आदि छन्दों का उसने अच्छा प्रयोग किया है।
मानंदसूरि-आपकी एकमात्र रचना 'सुरसुन्दरी रास' का पता चला है जिसकी रचना सं० १७४० में हुई। अन्य सूचनायें भनुपलब्ध हैं।
प्रानंदघन -आप १७वीं १८वीं शताब्दी के महान साधक संत और कवि थे। आपकी आनंदघन वहत्तरी या आध्यात्म बहत्तरी तथा चौबीसी नामक रचनायें अति विख्यात हैं । आपके पदों में कबीर की तरह अनुभव का सत्य, प्रिय के विरह की पीड़ा और साधना तथा तप का तेज है। आपके कृतित्व का परिचय तथा रचनाओं में व्यंजित रहस्यवाद की चर्चा द्वितीय खण्ड (१७वीं शती) में ही किया जा चुका है इसलिए यहाँ विस्तार से बचने का प्रयत्न है ।
प्रासकरण-आपकी मर्मस्पर्शी रचना 'नेमिचन्द्रिका' का निर्माण सं० १७६१ में हुआ था। इसमें नेमिनाथ और राजुल का चरित्र चित्रण सुंदरता के साथ किया गया है। इसका कथात्मक संघटन और शिल्प सौन्दर्य इसकी कोमल करुण कथा में चार चाँद लगा देता है। राजुल के चरित्र में घात-प्रतिघात की व्यञ्जना मार्मिक है। प्रियपथ पर चलते-चलते उसका हृदय विरह और करुणा के संगम में अवगाहन कर परम सात्विक एवं पवित्र हो गया है। कुछ पंक्तियाँ देखिए ----
ए उठि चाली है राजकुमारि, पिया पथ गहि लियो हो । ____ xxx काहे केत दुख मोको दीयो, कौन मेरो सुख हरि लीयो।
जब नहि पावहि उत्तर देहि, दीरघ सांस उसांसजु लेहि । १. मोहनलाल दलीचंद देसाई --जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३५९ (प्रथम
संस्करण ) और भाग ५ पृ० ३७ (नवीन संस्करण) २. नेमिचन्द्रिका पृ० २९-३० और डा० लालचंद जैन-रा० ब्रजभाषा के
प्रबन्ध काव्यों का अध्ययन पृ० ७९-८०
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