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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास अहमदाबाद में चौमासा किया। उस समय वहाँ खान मुहब्बत दिल्ली बादशाह का सूबेदार था जिसे कवि ने बड़ा त्यागी और दानी बताया है, यथा
आदेस तस रह्या आदरे चोमासु अमदाबाद।
महा खान मुहब्बते राजवी, तिहां राइ रे गाजे जस वाद ।' उसके व्यवहरिया रतनसी सुत मूलजीपारेख के आग्रह पर उदयसमुद्र ने यह रचना की थी। इसमें रचनाकाल नहीं है । कमलहर्ष का समय ज्ञात है इसलिए यह रचना इसी के आसपास की होगी इसीलिए सं० १७२८ पर देसाई जी ने प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है। जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० २६८-७० पर मं० १७२८ और भाग २ पृ० ५६० पर सं० १७८६ दिया गया है।
कवि ने लिखा है कि कुलध्वज की कथा कौतूहल कथा के साथ पुण्य कथा भी है इसलिए इसमें सोने में सुगन्ध के समान सौन्दर्य है, यथा
पुण्यकथा कौतिक कथा, अके सोनुं ने सुगन्ध ।
उदयसागर सरि-... इस नाम के दो कवि प्रमुख रूप से हुए हैं, प्रथम १७वीं शती में वर्णित हैं। प्रस्तुत उदयसागर विजयगच्छ के विजयमुनि>धरमदास>खेमराज>विमलसागर सूरि के शिष्य थे । इनकी रचना का नाम है--
मगसी पार्श्वनाथ स्तवन (५९ कड़ी) इसके अन्त में उपरोक्त गुरुपरम्परा दी गई है । इसका कलश निम्नवत् है...
इय पास सामी सिद्धिगामी मालव देसई जाणीयइ, मगसिय मंडण दुरितखंडण नाम हियडइ आणीयइ। श्री उदयसागर सूरि पाय प्रणमइ अहनिसि पास जिणंद अ, जिनराज आज दया दीठ वू मन हुवइ आणंद थे।
१. मोहनलाल दलीचंद देमाई जैन गुजर कवियो भाग २ पृ० २६८-२००
और भाग ३ पृ० १२७१ और १४५० (प्र० सं०)। २. वही, भाग ५ पृ० ३७१ (न० सं०) और भाग २ पृ० ५८८
(प्र० सं०) ।
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