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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गालिब ने इसी तर्ज पर कहा था
'दे और दिल उनको न दे गर मुझको जुबाँ और' इसकी आदि की पंक्तियां देखिए
श्री श्रुतदेवी सार, समरूं सासन नायिका;
प्रणमुं जिन चौबीस वलि सहगुरु-सुखदायका । रचनाकाल----संवत सतरे वरोतरे आषा त्रीज गुरुवार ।
रास रच्यो पुरवं दिरे, जिहां मोटो रे जिन त्रिण्य विहार। इसमें उत्तम सागर ने विजयदेव सूरि विजयप्रभ और कुशलसागर का सादर स्मरण किया है। इन्होंने यह रचना भणशालि वीरा के आग्रह पर की थी। यह रचना भद्रबाहु भाषित त्रिभुवन चरित्र पर आधारित है, यथा
भद्रबाह भाषित बड़ो रे देषी कुमार चरित्र, स्तवतां गुण गुणनिधि तणां, म्हि रचना रे कीधी सुपवित्र, के ।' जैन कवियों ने प्रायः प्राचीन कृतियों के आधार पर नवीन भावभंगी के साथ अपनी रचनायें की हैं जिन्हें कोरा अनुकरण नहीं कहा जा सकता और न वे उनकी मौलिकता का दावा करते हैं, किन्तु वे पाठकों से सहृदयता और समझदारी की अपेक्षा अवश्य करते हैं।
उदयचंद मथेन (यति, खरतरगच्छ के ऐसे जैन यति जो साध्वाचारका पूर्ण पालन न कर सकें उन्हें मथेन कहा गया है । प्रस्तुत मथेन राज्याश्रित सुकवि थे । इन्होंने बीकानेर के महाराज अनूपसिंह के लिए अलंकार और नायक-नायिका भेद पर आधारित रीतिग्रंथ अनूपरसाल सं० १७२८ में लिखा। इसकी पुष्पिका में इसके रचयिता की जगह अनूपसिंह का ही नाम दिया हुआ है किन्तु प्रति की प्रारंभिक सूची में 'मथेन उदयचन्द कृत' लिखा हआ है। इसकी एकमात्र प्रति अनूप लाइब्रेरी बीकानेर में सुरक्षित है। इन्होंने संस्कृत में पांडित्यदर्पण नामक ग्रंथ लिखा है। हिन्दी में आपकी लोकप्रिय रचना 'बीकानेर गजल' है जो अपने समय में अनोखी विधा की रचना थी १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० १४७-१४९
और भाग ३ पृ० ११९९ (प्र० सं०) और भाग ४ पृ० २४७-४८ (न० सं०)।
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