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उदयरत्न
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रचनाकाल-फागुण वदि अकादसी दिवसे, सतर से अकसट्टा वरषे,
शुक्रवासर ने श्रवण नक्षत्रे, सर्वयोग मनहर्षइ रे । ते मुनि । पंचासर प्रभपास प्रसादे, श्री मणिपति मनि गायो,
अणहिलपुर पाटण मां से मे, पूर्णकलस चढायोरे । ते मुनि।' राजसिंह रास अथवा नवकाररास अथवा पंचपरमेष्ठी (३१ ढाल ८८० कड़ी सं० १७६२ मागसर शुक्ल ७ सोमवार, अहमदाबाद) ..... आदि -अरिहंत आदि देइ ने परमेष्ठी जे पंच,
पहिले प्रण# तेहने, जिमलहीइ सुख संच । इसमें नवकार मंत्र का माहात्म्य बताया गया है--
श्री नवकार तणा गुण गाया मनवंछित सुख पाया, बे, मीलतणा दृष्टांत बताया, परगट फल देखाया बे।। पंचकथा गभित गुणधारी, अ भीलचरित मनोहारी, बे ।
सुणी नवकार जपो नरनारी, सुरनर शिव सुखकारी, बे। रचना काल एवं स्थान--
संवत सत्तर बासठ बरषे मागसिर सुदी सातमे हरखे बे, सोमवार नक्षत्र धनिष्ठा, हर्षण योग गरिष्ठा बे। गर्जर मंडल मांहि गाजे, गढ़ चौफेर विराजे बे,
अहमदाबाद नगीनो जे, भूषण साबरमति नो बे ।' ब्रह्मचर्य अथवा शियल नी नववाड संञ्झाय (१० ढाल सं० १७६३ श्रावण कृष्ण १०, बुधवार, खंभात) आदि--
श्री गुरु ने चरणे नमी समरी सारद मात,
नव विध सीयलनी वाडीनो, उत्तम कहुँ अवदात । अंत ---वंभाति रही चोमास सत्तर वेसठे हो श्रावण वदि (बीजा)
दसमी बुधे भणी। उदयरत्न करजोडि सीयलवंत नर नारीहो तेने जाऊं भामणे । बारव्रतरास (७७ ढाल १६७१ कड़ी सं० १७६५ फाल्गुन शुक्ल ७ रवि, अहमदाबाद)
१. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ. ७६-११४ a (न० सं०)। २. वही भाग ५ पृ० ८८-८९ (न० गं०) ।
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