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मगुर्जर हिन्दी जैन माहित्य का वृहद् इतिहास आदि - वंदृ अरिहंत सिद्ध ने आचारज उवझाय,
साधु सबेनि नित नमुं शिवपथि जेह सखाय ।
देश विरतिनो धर्म जे समकित मूल व्रत बार,
रास रचुं हुं तेहनो आलोवा अतिचार । रचनाकाल कार्तिक शुति सातमी रविवारे, सत्तर से पासठ वरषे,
उत्तराषाढ़ नक्षत्र धृति योगि, संघने आग्रह ने हरषे रे । अंत-सत्तोत्तरमि ढाल सोहावी, उदयरतन कहि आज, कल्याणनि में कोड़ी उपाई, पाम्यो अवीचल राज रे,
भावि समकित सुरतरु सेवो । मलयसुन्दरी महाबलरास अथवा विनोदविलास रास (१३३ ढाल २९७५ कड़ी सं० १७६६ माग शुक्ल ८ सोम, खेड़ा हरियाला गाम)
प्रारम्भ में तीर्थङ्कर शांतिनाथ, पार्श्वनाथ और गौतम गणधर तथा गुरु हीररत्न के साथ सरस्वती की वंदना की गई है। मंगलाचरण के पश्चात् कवि कहता है ....
मलयसुन्दरी नो मोदस्यं नामि विनोद विलास,
ग्रंथ आगम गुण लेइने रम्य रचूं हुं रास । रचनाकाल तथा स्थान---
संवत सतरै सै छासठि, मागसिर सुदि आठमि दिवसे रे, पूर्वाभद्र पद नक्षत्र सिद्धि योग मोमवारनि करिसे रे। खेडा हरियाला गाम मां जिहां प्रतिपिं पास जिणंदो रे,
भीडि भंजण नामि प्रभु प्रतपि जग जेम जिणंदो रे ।' यशोधररास (८१ ढाल १५०३ कड़ी सं० १७६७ पौष शुक्ल ५, गुरु, पाटण) आदि -- कर आमल परि जे फलि, सकल विश्व सयकाल ।
त्रिकालवेदी त्रिविध नमुं, ते जिन सुविधि त्रिकाल । रचनाकाल -सतर से सतसठा समिरे, शुदि पांचमि सुदिनां
पोस मासि गुरुवासरिरे, सिद्धि योग शुभ लगनां । १. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन गुर्जर कविओ भाग ५ पृ० ८८-८९
(न० सं०)।
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