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आध्यात्मिक आलोक आखिर शकटार भद्रबाहु के पास आया और उनकी सेवा में सारी बातें निवेदन कर दी और साथ ही यह भी अनुरोध किया कि यदि आप राज दरबार में मंगल कामना के हेतु जल्द नहीं पधारेंगे तो हमारा बुरा होगा । यह सुनकर भद्रबाहु ने कहा "बालक सात दिनों के बाद ही बिडाली के मुख से चोट खाकर मर जाएगा, अतः आज न जाकर हमने एक बार ही जाने का सोचा है।" शकटार ने गुरुमुख से सुनी बात राजा को कह दी। दो प्रकार के निर्णय से राजा विचार में पड़ा और उसने समस्त नगर की बिल्लियों को निकलवा दिया। .
संयोगवश सात दिन के बाद बालक का स्वर्गवास हो गया । क्योंकि धाई के प्रमाद से एक बिडालमुखी अर्गला उस बालक पर गिर पड़ी। इस घटना से राजा बहुत दुःखी हुआ । भद्रबाहु ने राजदरबार में जाकर राजा को सान्त्वना दी। राजा ने भद्रबाहु का बड़ा आदर किया और उनके त्याग, सत्य एवं ज्ञान पूर्ण जीवन से बड़ा प्रभावित हुआ । वराहमिहिर इस घटना से बहुत क्षुब्ध हुए तथा उनके हृदय में प्रतीकार की भावना प्रदीप्त हो गई मगर भद्रबाहु ने उस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया
और अपनी साधना में लीन रहकर शान्त मन से आत्म-कल्याण करने लगे । वास्तव में ज्ञानीजीवन सागर की तरह गम्भीर और मेरु की तरह अचल होते हैं।
___ यदि हम भद्रबाहु के समान धर्म मार्ग में दृढ़ रहकर आत्म साधना करेंगे तो निश्चय ही आत्मा का कल्याण होकर रहेगा।