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प्रतापी, इन्द्रके समान परम ऐश्वर्यशाली, कुवेरके समान धनी, तथा समुद्रके समान गंभीर था । इनके अतिरिक्त उसमें और भी अनेक प्रकारके गुण थे, त्यागी था, वह भोगी था, सुखी था, धर्मात्मा था, दानी था, वक्ता था, चतुर था,शूर था, निर्भय था, उत्कृष्ट था, धर्मादि उत्तम कार्यों में मान करनेवाला ज्ञानवान
और पवित्र था, इसीलिये अनेक राजाओंसे सेवित उपणिक महाराजको न तो चतुरंग सेनासे ही कुछ काम था और न अपने बलसे ही कुछ प्रयोजन था ।
महाराज उपश्रेणिकके साक्षात् इन्द्रकी इन्द्राणीके समान, जो उत्तमरूप तथा लावण्यसे युक्तथी, इन्द्राणी नामकी पटरानी थी । वह तनूदरी इन्द्राणी, अनेकप्रकारके गुणोंसे युक्त होनेके कारण अपने पतिको सदा प्रसन्न रखती रहती थी । उसके स्तन, अमृत कुंभके समान मोटे, कामदेवको जिलानेवाले, उत्तम हाररूपी सर्पसे शोभित, दो कलशोंके समान जान पड़ते थे । और उस के उत्तम स्तनोंके संबंधसे मदन ज्वर तो कभी होता ही नहीं था । जैसे रसायनके खानेसे ज्वरदूर होजाता है वैसेही उसके स्तनोंके रसायनसे मदन ज्वर भी नष्ट होजाता था । वह इन्द्राणी अत्यंत पवित्र, और नानाप्रकारकी शोभाओंकर सहित, उपभोणिक राजाको आनन्द देती थी तथा वह राजा भी इस पटरानाके साथ सदा भोगविलासको भे.गता हुआ
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