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बृक्ष, ऐसे मालूम पड़ते हैं मानो वे मूर्तिमान अत्यंत शोभा है और अपने पराक्रमसे इस लोकको भलीभांति जीतकर स्वर्गलेके जतिनकी इच्छासे स्वर्गलोकको जारहे हैं। उसनगर के रहने वाले भव्यजीव मनुष्य नानाप्रकारके व्रतोंसे भूषित होकर केवल - ज्ञानको प्राप्तकर तथा समस्तकर्मोंको निर्मूलनकर परमधाम मोक्षको प्राप्त होते हैं । और बहांकी स्त्रियोंके प्रेमी अनेक पुरुष भी व्रतोंके संबंधसे श्रेष्ठ चारित्रको प्राप्त कर स्वर्गको प्राप्त होते हैं क्योंकि पुण्यका ऐसा ही फल है । वहांके कितने एक सुखके अर्थी भव्यजीव, उत्तम, मध्यम, जघन्य, तीनप्रकारके पात्रोंको दांनदेकर भोगभूमिनामक स्थानको प्राप्त होते हैं और जीवन पर्यंत सुखसे निवास करते हैं । राजमहनगरके मनुष्य ज्ञानबान है इसीलिये वे विशेषरीतिसे दान तथा पूजामें ही ईर्षा द्वेष करना चाहते हैं और ज्ञानमें ( कला कौशलोंमें कोई किसीके साथ ईर्षा तथा द्वेष नहीं करता । उसमें जिनमंदिर तथा राजमंदिर सद् जय जय शब्दोंसे पूर्ण, उत्तम सभ्यमनुष्यासे आकीर्ण, याचकोंको नानाप्रकारके फल देनेवाले, शोभित होते हैं ।
राजग्रहनगरका स्वामी नानामकारके शुभ लक्षणोंसे युक्त शरीर और देदीप्यमान यशका धारण करनेवाला, उपश्रोणिक नामका राजा था । बह उपश्रेणिकराजा अत्यंतज्ञानवान, कल्पवृक्षके समान दानी, चंद्रमाके समान तेजस्वी, सूर्यके समान
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