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( १३ )
उत्तमोत्तमफलोंको देनेवाले उत्कृष्ट वृक्ष, कल्पवृक्षोंकी शोभाकी धारण करते हैं । उसदेश में वहांके मनुष्य, पके हुये धान्यों के खेतो में गिरते हुये सूवोंको कल्पवृक्षके फलोंके समान जानते हैं । वहां अत्यंत निर्मल जलसे भरे हुये, काले काले हाथियोंसे व्याप्त, सरोवर ऐसे मालूम पड़ते हैं मानो स्वयं मेघ ही आकर उनकी सेवा कर रहे हैं । वहांके तालाव साक्षात् कृष्णके समान मालूम पड़ते हैं क्योंकि जिसप्रकार श्रीकृष्ण कमलाकर अर्थात् लक्ष्मीके (कर) हाथ सहित है, उसीप्रकार तालाव भी कमलाकर अर्थात् कमलों से भरेहुये हैं । जिसप्रकार श्रीकृष्ण सुमनसों (देवों) से मंडित हैं, उसीप्रकार तालाव भी (सुमनस) अर्थात् नाना प्रकारके फूलोंसे पूर्ण हैं । जिसप्रकार श्रीकृष्ण हस्तियों के मदको चकना चूर करनेवाले हैं उसीप्रकार तालाव भी हत्तियोंके मदको चकनाचूर करनेवाले हैं अर्थात् इनके पास आते ही हत्ती शांत होजाते है । और जिसदेशमें वनमें, पवर्तके मस्तकोंपर, ग्राम में, देश में, पुरमें, खोलारोंमें, नदियों के तटोंपर, सदा मुनिगण देखनेमें आते हैं और धर्मके उपदेशमें तत्पर, निर्मल, असंख्याते गणधर, बड़े बड़े संघोंके साथ दृष्टिगोचर होते हैं उसदेशमें कहीं पर अनेक प्रकारके विमानोंमें बैठे हुवे उत्तमदेव, अपनी अपनी अत्यंत सुंदरी देवां गनाओं केसाथ केवलोभगवानको पूजाकरनेकोलये आते हैं और
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