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सूर्य उदयाचल से ऊपर उठता हुआ आकाश के मध्य-प्रदेश में जा पहुंचा था । कड़ी धूप से तपी हुई। जमीन लोगों के गमनागमन में बाधा पैदा करती थी । लोगों के शरीर से पसीना निकल कर गर्म हवा के झोंको को ठंडा कर देता था । ऐसे मध्याह्न में महाराजा प्रतापसिंह दीपशिखा के देवोपम वैभव संपन्न सुसराल में
आनन्द-मौज कर रहे थे । खस की टट्टियां लगी हई थी गुलाब जल छिड़का जा रहा था । गुलाब के इत्र की महक दूर २ तक के पदार्थों को सुवासित कर रही थी। महाराजा अपने आराम गृह में आराम कर रहे थे।
इस प्रसङ्ग में राजा दीपचन्द्र देव अपनी भतीजी चन्द्रवती के पति राजा शुभगांग के भेजे हुए दूत को लेकर