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( २२ ) राजाने सबको यथायोग्य दान-मान-सन्मान-सत्कार से संतुष्ठ किया । इस कार्य से जहां महाराज की इच्छा पूर्ण हुई वहां राजा दीपचन्द्र के सिर से एक बड़ा भारी बोझ भी हल्का होगया।
सामुद्रिक-अंगविद्या को जानने वाले कलावान् ने रानी सूर्यवती के सुलक्षणों को देखकर महाराजा से प्रेरणा की कि ये अद्भुत स्वरूप वाली देवी पट्टरानी बनने योग्य हैं । इनके शुभ लक्षण स्वामी के स्वसुर के पिता के पितामहके नाना के एवं पुत्र पौत्रों के छत्रपतित्व को सूचित करते हैं । ये बड़ी योग्य होगी। इनकी कूख में चिंतामणी रत्न के समान दो पुत्रों की उत्पत्ति होगी । सामुद्रिक की इस बात को सुनकर एवं रानी सूर्यवती के प्रत्यक्ष अनुपम गुण गौरव को देखकर महाराजा ने उन्हें अपने अंतःपुर में पट्टराणी पद पर प्रतिष्ठित किया। लोको में यह बातअहो भाग्य ! अहो रूप !! अहो सौभाग्य !!! पूर्व जन्म में बोये धर्म रूप कल्पवृक्ष के ये प्रारम्भिक फल हैं-इस प्रशंसा के रूप में खूब फैल गई।