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भारत के एक प्रसिद्ध व्यक्ति की
श्रात्म कथा
का
एक
अंश
पुजारी
लेखक, श्रीयुत रा० सा०
जारी यह उनका निजी नाम न
था, किन्तु गाँववाले जवानी से ही उन्हें इस नाम
से
रते थे ।
पुका
पुजारी का जन्म १८७५ ईसवी में ठेठ देहात के एक बहुत ही छोटे गाँव में हुआ था । उनके गाँव से कोस कोस भर तक कोई कच्ची-पक्की सड़क न थी, डाकखाना भी आठ मील दूर था और बाज़ार भी प्रायः उतनी ही दूर । यही हाल पाठशाला या मदरसा का था ।
पुजारी अपने पिता की ज्येष्ठ सन्तान थे । उनके पिता की अपने गाँव में ही प्रतिष्ठा न थी, बल्कि ग्रास-पास के कितने ही गाँवों में उनके बिना पंचायत न होती थी। ईमानदारी और विशालहृदयता उनकी पैत्रिक सम्पत्ति थी । पुजारी के पिता एक बड़े परिवार के प्रधान थे । यद्यपि वे अपने पिता के एकमात्र पुत्र थे, तो भी अपने चचेरे तीन भाइयों के साथ उनका सगे भाई से भी अधिक प्रेम था । सबसे छोटे को तो उन्होंने दूर के गाँव में संस्कृत पढ़ने के लिए भेज दिया था । यद्यपि उसकी पढ़ाई 'सत्यनारायण' और 'शीघ्रबोध' से आगे नहीं बढ़ी थी, तो भी वह गाँव में पंडित कहा जाता था, और वह था भी उस गाँव के लिए वैसा ही ।
पुजारी के पिता का देहान्त ४५-४६ वर्ष की ही उम्र में हो गया था । उस वक्त पुजारी १५ वर्ष के हो पाये थे । उनसे छोटा एक भाई और तीन बहनें थीं, जिनमें सबसे
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छोटी ६-७ वर्ष से अधिक न थी । पिता ने बड़े लड़के और बड़ी लड़की की शादी, रवाज के मुताबिक, १०-१२ वर्ष की ही अवस्था में कर दी थी। उनके पिता के मरने के समय तीनों चचेरे चचे एक ही घर में रहते थे । तीनों ही भलेमानस थे और अपने भाई के प्रेमपूर्ण बर्ताव के चिरकृतज्ञ थे । यदि उनकी चलती तो वे पुजारी को बाप के मरने का खयाल भी न श्राने देते, किन्तु पुजारी की मा दूसरी धातु की बनी थीं। मीठी बोली तो मानो वे जानती ही न थीं। ज़रा-सी बात में चार सुना देनी उनकी आदत में थी। पति के जीते समय तो ज़बान पर भारी अंकुश था; किन्तु पीछे कोई रोकनेवाला न था । उनका हृदय बहुत संकीर्ण था । वे कुढ़ा करती थींखेतों और धन में हमारा आधा हिस्सा होता है । दिवर और उनके लड़के - बाले कैसे हमारे धन को खायँगे ? ज़रा-सी बात में वे ताना दे डालती थीं । उनके देवर और देवरानियाँ पहले बहुत लिहाज़ किया करती थीं, किन्तु श्राये दिन की किचकिच से उनका नाकों दम हो गया, और तीन वर्ष बीतते न बीतते उन्हें अलग हो जाना पड़ा । ( २ )
पुजारी की मा बहुत प्रसन्न थीं । उन्होंने घर में ही नहीं, हर एक खेत में आधा आधा करवाया था । खेत उनके पास काफ़ी थे । काम करने के लिए कुछ चमारों और भरों के घर भी मिले थे । किन्तु पुजारी को खुशी कहाँ से हो सकती थी ? मा के झगड़ालू स्वभाव के कारण १८ वर्ष की ही उम्र में एक परिवार का सारा बोझ उनके कंधे पर ा पड़ा था । कहाँ खाने खेलने का समय और कहाँ यह ज़िम्मेदारी ! उन्हें खेती-बारी और परिवार
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