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संख्या ३]
ऐरोमा
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का दिल धड़क रहा था । विष शनैः शनैः अपना असर जब हर तरफ़ सुकून हो गया, तब उन्हें ऐरोमा कर रहा था। आखिर प्रेमिका देश-प्रेम को त्याग को तैयार करने की चिन्ता हुई। उन्होंने प्राणनाथ कर प्रेमिका के आँचल की शरण ली। ईमान पराजित को विष देना तब प्रारम्भ किया था जब उन्हें ऐरोमा में हो गया, शैतान की जय हुई । प्राणनाथ ने एक पड़नेवाली सब वस्तुएँ मिल गई थीं। एक बूटी की दीर्घ निःश्वास छोड़ा और इसके साथ ही उसका सिर कमी थी सो वह भी उन्होंने एक हकीम से पूछ कर मँगा ली कुर्सी पर लुढ़क गया। हाल में रोशनी हो गई । 'इंटरवेल' थी। प्राणनाथ ने ऐरोमा को तैयार करने में देशी और में लोग उठकर बाहर जाने लगे। प्राणनाथ निश्चेष्ट, अँगरेज़ी दवाओं से काम लिया था। निस्पन्द, निष्प्राण पड़ा रहा। इसके समीप बैठनेवालों ने दोपहर का समय था। खिड़की से आनेवाली इसे देखा। समझे, सो रहा है, किन्तु जब उनके वापस धूप की किरणें कम होते होते बिलकुल मिट चुकी थीं।
आने पर भी उसने कोई हरकत न की तब उन्हें खटका टेबुल पर रक्खी हुई घड़ी की सुइयाँ बारह बजा रही थीं हुआ। इसके बाद एकाएक हाल में शोर मच गया। नौकर तीन बेर खाना खाने के लिए बुलाने आ चुका प्राणनाथ मर चुका था। उसका शव बाहर लाया गया। था, किन्तु डाक्टर साहब प्रयोगशाला में ऐरोमा तैयार दो-तीन डाक्टर भी वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने फ़तवा करने में लीन थे। उनके कपड़े पसीने में भीग चुके थे। दे दिया, युवक की मौत दुर्बलता के कारण दिल की नोट-बुक का पृष्ठ उनके हाथ में था और वे उसी के अनुहरकत बन्द हो जाने से हुई है। उसकी जेब से 'सम्मार्ट सार काम कर रहे थे। उन्होंने सब बूटियों को मिलाया ऐंड को' के काग़ज़ निकले। वह वहाँ पहुँचा दिया गया। था। दवाइयों को नुस्खे के अनुसार मिलाकर उन्हें ___डाक्टर हरिकुमार ने जब प्राणनाथ के शव को देखा आग पर चढ़ा दिया था। केवल एक दवा रह गई तब ढाढ़ें मार कर रोने लगे। इन मगरमच्छ के अाँसुओं थी और उसे उबलते समय मिलाना था । पन्द्रह मिनट को देखकर दूसरे भी रो पड़े। उसके शव का आलिंगन व्यतीत हो गये, दवा उबलने लगी। उन्होंने मुँह बर्तन करते हुए उन्होंने कहा- "हाय! मेरी दाई भुजा टूट गई।" के पास ले जाकर उबलती हुई दवा को देखा और दूसरी
शीशी उसमें उड़ेल दी। उस समय ज़ोर का धड़ाका 'सम्मार्ट ऐंड को' की ओर से ऐरोमा का विज्ञापन हुअा। दवा उबल कर उनके मुँह पर आ पड़ी। डाक्टर बदस्तूर जारी था, परन्तु बनी हुई दवा की मात्रा एक ही साहब का मुँह झुलस गया, आँखें जल गई, गर्दन और दिन के आर्डरों की भेंट हो चुकी थी। डाक्टर साहब हाथों पर छाले पड़ गये, उनके दाँत झड़ गये और दवा बाद की अाई हुई माँगों को पूरा न कर सके थे। प्राण- के गले में उतर जाने के कारण वे धरती पर गिर कर नाथ की मृत्यु पर वे कई दिनों तक उसके घर पर रहे तड़फने लगे और इससे पहले कि कोई उनकी सहायता थे। उसके माता-पिता को सान्त्वना देते थे। कहते को प्राता, उनके प्राण-पखेरू उड़ गये । उन्हें यह थे, आपका बच्चा नहीं मरा, मेरा भाई मर गया है, ज्ञात न था कि 'फार्नहीट' के कितने दर्जे तक दवा को गर्म मेरा बच्चा मर गया है। अपने पाप पर पर्दा डालने करना है, और अधिक खौलने के कारण यह घटना घट के लिए उन्होंने प्राणनाथ के मा-बाप को अपने यहाँ गई। बुलवा लिया था और उन्हें वहाँ ही रहने को बाध्य किया। ऐरोमा का नुस्खा उनके हाथ से गिरकर कब को लोग यह देखकर कहते कि डाक्टर हरिकुमार देवता हैं। आग की भेंट हो चुका था।
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