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सरस्वती
[भाग ३६
लिया था। प्रान्तिक भाषाओं के पत्रों के सम्पादकों को नौकरियाँ देने की भी व्यवस्था कर रही है। सरकारी भी इस सभा से सहयोग कर अपने अभावों तथा अभि- दफ्तरों के चपरासियों आदि में उनके लिए १० फ़ी सदी योगों की चर्चा इस सभा के द्वारा करनी चाहिए । इस जगहें सुरक्षित कर दी गई हैं। अब रहे क्लार्क, सेा इनमें बार के अधिवेशन में जिन सम्पादकों या पत्रों के प्रति- उन्हें कितनी फी सदी जगहें दी जायँ, इस पर अभी विचार निधियों के नाम छापे गये हैं, बाहरवालों में प्रान्तीय भाषात्रों हो रहा है। सरकारी अछूतोद्धार-विभाग रिपोर्ट के साल के पत्रों में केवल उर्दू के एक पत्र-सम्पादक का नाम लिया ६३ अछूत उम्मेदवारों को सरकारी नौकरियाँ दिलवाने गया है। इससे जान पड़ता है कि देशी भाषाओं के पत्र में समर्थ हुअा है। इनमें २५ मेट्रिक दर्जा पास थे, २७ सम्पादकों ने इस सभा से जैसा चाहिए, वैसा सहयोग नहीं वर्नाक्यूलर स्कूल फ़ाइनल पास थे, शेष ४१ ऐसा कोई दर्जा किया। ऐसा नहीं होना चाहिए था। अाशा है, भविष्य नहीं पास थे। अछूत उम्मेदवारों को दफ़्तर के कामों में देशी भाषाओं के सम्पादक भी इस संस्था में अधिक का ज्ञान न होने के कारण विशेष कठिनाई होती है । इसके संख्या में शामिल होकर इससे लाभ उठाने का यत्न लिए प्रतिवर्ष ६ उम्मेदवारों को ग्राफ़िस का काम-काज करेंगे।
सिखलाने का निश्चय किया गया है। ऐसे प्रत्येक उम्मेद
वार को १२) मासिक वेतन देने की भी व्यवस्था की बम्बई में अछूतोद्धार
गई है। अछूतोद्धार के काम में बम्बई की सरकार बड़ी सरगर्मी बम्बई-सरकार की यह सारी व्यवस्था अन्य प्रान्तों की दिखा रही है। उसने यह आदेश किया था कि स्कूलों में सरकारों के लिए अनुकरणीय है । सभी जातियों के लड़के एक साथ बैठकर शिक्षा ग्रहण करें, अर्थात् अछूतों को अलग बैठाकर शिक्षा देने का गुप्त जी के दो पुत्रों का स्वर्गवास क्रम उठा दिया जाय । परन्तु सरकार के इस हुक्म का हिन्दी के प्रसिद्ध कवि बाबू मैथिलीशरण गुप्त पर जैसा चाहिए, पालन नहीं किया गया। तथापि अधिकारी उनकी ढलती उम्र में बड़ी भारी विपत्ति पड़ गई है। लोग इससे उदासीन नहीं हैं, और वे बराबर इस बात का उनके सुमन्त तथा सुदर्शन नाम के जो दो पुत्र थे उन प्रयत्न कर रहे हैं कि सरकार के आदेश का पूर्ण रूप से दोनों की पिछले दिनों कुछ ही दिनों के अन्तर में मृत्यु पालन हो।
हो गई। पुत्रशोक कितना भारी होता है, यह एक बम्बई-सरकार की अछूतोद्धार-विभाग की जो रिपोर्ट अकथ्य बात है। श्रीमान् गुप्त जी के इस घोर दुःख के हाल में (१६३३-३४) प्रकाशित हुई है उससे प्रकट होता समय हमारी सहानुभूति है। ईश्वर करे, गुप्त जी का यह है कि प्रायमरी स्कूलों में अछूत बालकों को मासिक वृत्तियों दारुण दुःख सहन करने को समुचित बल प्राप्त हो । में ३२८) दिये गये। इसी प्रकार माध्यमिक स्कूलों में पढ़नेवाले अछूत बालकों को वृत्ति के रूप में १०६३) देशी चिकित्सा-प्रणाली की अवैज्ञानिकता खर्च किये गये। और टेक्निकल शिक्षा पानेवाले उस दिन काशी के एक अस्पताल की निरीक्षक-पुस्तक अछूत बालकों को ८५३) वृत्ति में दिये गये। इस प्रकार में इन प्रान्तों के सिविल अस्पतालों के इन्स्पेक्टर जनरल प्रान्तीय शिक्षा-विभाग अछूतों को सार्वजनिक स्कूलों में कर्नल एच० सी० बकले ने लिख दिया है कि आयुर्वेदिक समानता का दर्जा देने में ही यत्नवान् नहीं है, किन्तु उनमें चिकित्सा-प्रणाली अवैज्ञानिक है । उनके ऐसा लिखने का से असमर्थ योग्य बालकों को छात्रवृत्तियाँ दे देकर उन्हें पत्रों में खासा विरोध किया गया है । इस विरोध का एक 'शिक्षा प्राप्त करने के लिए उपयुक्त प्रोत्साहन भी दे रहा है। कारण यह भी बताया गया है कि बकले साहब उसी . इसी प्रकार वहाँ की सरकार अछूतों को सरकारी प्रान्तीय सरकार के एक उच्चाधिकारी हैं जो आयुर्वेदिक
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