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सरस्वती
बाँधे एक शख्स के साथ-साथ चला आ रहा था। मैं भी उधर से आ रहा था कि
"
एक बड़े-से लड़के ने ईर्ष्या वश उसे टोक कर कहा" तू तो श्राज उधर गया ही नहीं । "
“हुँ, गया नहीं ! तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ कि मैं गया नहीं ? मैं तो पिछली रात अपनी मौसी के यहाँ सोया था। उसका संदेश लेकर मैं भी वहाँ से लौट रहा हूँ ।"
उस बड़े लड़के ने फिर सवाल किया - "अरे, दो घण्टे तो तुम्हें हमारे साथ गुल्ली-डंडा खेलते हो गये हैं और तू कहता है कि मैं संदेश लाया हूँ, अभी आया हूँ !”
इस दिलचस्प विवाद के लिए मैं कुछ देर और खड़ा रहता अगर मुझे जेमी की याद न या जाती । मैंने समझ लिया कि इस लड़के ने जेमी को मेरे साथ आते देखा है । उसके बाद इनमें से किसी ने नहीं देखा । लड़कों को आपस में झगड़ते छोड़कर मैं वापस क्वार्टर को आया । मंदिर से परे दूकानदारों से पूछा कि शहर को जाता हुआ कोई कुत्ता तो नहीं देखा । किसी ने सिर हिला दिया, किसी ने 'नहीं, बाबू जी' कह दिया। लेकिन एक मियाँ ने तो शायद सहानुभूति से बाक़ायदा हुलिया पूछी“किस रंग का था ? कितना बड़ा था ? मोटा था कि पतला ? लंबा था कि छोटा ? गले में पट्टा था कि नहीं ? जिस्म पर कोई दाग़ या निशान तो नहीं था ?
मैंने सभी सवालों का जवाब दिया। इसके बाद मियाँ साहब ने थोड़ी देर सोचते हुए ग्राहिस्ता-आहिस्ता कहा"बाबू, यहाँ नूर-इलाही का कुत्ता तो हमने कई बार देखा है, पर उसका रंग तो काला है ।"
अब तो मुझे कुछ क्रोध आया, कुछ हँसी भी । दोनों का नियमन करके मैंने उसको धन्यवाद दिया और एक तरफ़ हो गया । इतने में नये कोट की तरफ़ से एक ताँगा आ पहुँचा। उसमें बैठकर हम अपने क्वार्टर के सामने जा खड़े हुए I
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[भाग ३६
"लेकिन भाई, हमारा इसमें क्या कुसूर है ? तुम खुद ही तो श्राँगन में बैठे थे और वह तुम्हारे सामने लेटा हुआ था । "
“मैं आँगन में तो बैठा था, लेकिन दरवाज़े की रखवाली थोड़े ही कर रहा था । "
भौजाई ने समझा और तो कुछ हो नहीं सकता इसलिए बलंदी को दो-चार गालियाँ देने के बाद कहा"यह है ही गधा । अक्ल तो इसके नज़दीक भी नहीं फटकी । जानते हो कि जानवर है । दरवाज़ा खुला रहेगा तो वह बाहर चला जायगा । ज़रा उठकर बंद ही कर देता । लेकिन यह इससे थोड़ा ही होगा ।"
बलंदी ने झटपट कहा - "बीबी जी, मैंने क्या किया है ? अभी मैं आपको खाना खिला रहा था। बाबू जी दफ़्तर गये । जाते वक्त वे मुझे हमेशा आवाज़ देकर जाते हैं कि दरवाज़ा बंद कर लो । आज उन्होंने कोई आवाज़ ही नहीं दी । भला इसमें मेरा क्या कुसूर ?"
" चुप रहो ! " भौजाई बोली--- "सब काम बिगाड़ कर ahar किये जा रहा है । "
उधर ताँगेवाले ने आवाज़ दी -- "बाबू जी, श्राश्र भी । आपकी कानफ़रेंस खतम भी होगी या नहीं ? मुझे तो देर हो रही है ।"
मैं बाहर जाकर ताँगेवाले पर बरस पड़ा - " अरे ! यह कानफ़रेंस क्या कह रहा है ? तुम्हें देर हो रही है तो चले जात्रो; हम और ताँगा ले आयेंगे ।"
"बाबू साहब, मैंने कुछ बुरा तो नहीं कहा । श्राखिर हो क्या गया है। कुत्ता ही तो गुम हुग्रा है न ? श्राप तो इस तरह गुस्से में हैं जिस तरह किसी के जवाहरात खो गये हों । कुत्ता है। मिल जायगा । किसी को उसे रखकर करना ही क्या है ?"
मुझे ग़ुस्से में देखकर भौजाई ने बड़ी नरम-सी आवाज़ में पूछा - " क्यों भई, कुत्ता नहीं मिला ?"
उसकी नरम आवाज़ सुनकर मैंने अगली सीट पर बैठते हुए कहा – “मियाँ, तुम नहीं जानते कि यह माल कितनी क़ीमत का है। एक लेडी ने इसको लेने के "जब आप लोगों ने उसे खो दिया है तब वह क्या लिए कितनी बार दरख्वास्तें कीं और करवाई । लेकिन कहीं मिल सकता है ?"
डाक्टर साहब न माने । तुम कहते हो, कोई इसे लेकर
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