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संख्या ६]
सामयिक साहित्य
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कविवर हाली की जयन्ती ध्येय की पूर्ति का कोई न कोई उपाय कर ही लेता है।
अल्ताफ़ के ससुरालवाले सम्पन्न थे। इससे उसने लाभ गत २६ आक्टोबर को उर्दू के प्रसिद्ध कवि हाली उठाया और अपनी स्त्री को बहाने-बहाने उसके नैहर भेज की जयन्ती उनकी जन्मभूमि पानीपत में बड़ी धूमधाम श्राप चुपचाप दिल्ली के लिए भाग खड़ा हुआ। से मनाई गई। उस तारीख को हाली को जन्म लिये दिल्ली में अल्ताफ़ ने उच्च कोटि के अरबी और फ़ारसी १०० वर्ष हो गये। उसके सम्बन्ध में दैनिक भारत' के साहित्य का अध्ययन शुरू किया । इन्हीं दिनों में एक लेख छपा है। उसका एक ज्ञातव्य अंश इस ग़ालिब का नाम उर्द-साहित्य में रोशन हो रहा था। प्रकार है
अल्ताफ़ को लिखने-पढ़ने का शौक था ही, उसने आज-ता० २६ अक्टूबर से ठीक एक सौ वर्ष ग़ालिब के पास आना-जाना शुरू किया और उनसे उर्दूपहले (सन् १८३५ ई० में) ख्वाजा ईजादबख्श नाम के शायरी का ज्ञान प्राप्त कर उन्हें अपना काव्य-गुरु बनाया। एक मुसलिम गृहस्थ के परिवार में एक बालक ने जन्म गालिब की कपाधि हाली पर विशेष रूप से रहती लिया। किसे पता था कि यही बालक आगे चलकर थी और हाली ने भी अपनी प्रतिभा के ज़ोर से उर्दूअपनी जन्मभूमि की तरह उर्दू-साहित्य और विशेषकर कविता का प्रवाह ही बदल दिया। उर्दू-काव्य में एक नवीन युग लावेगा और सदैव के लिए हाली की कविता में सबसे बड़ी विशेषता यह थी
अमर कर जायगा। इस बालक का नाम कि उनकी भाषा सरल और उनके भाव सुबोध होते थे। अल्ताफ़ हुसेन रक्खा गया ।
भाषा और भाव का निकट से निकट सम्बन्ध ग़ालिब बालक अल्ताफ़ का एक प्रकार से अपने माता-पिता की कविता की खासियत थी । हाली की कविता में भी ये के लाड़-प्यार से वंचित ही रहना पड़ा। जिस समय वह गुण मौजूद दिखलाई देते हैं। ७-८ वर्ष का ही था उसके पिता स्वर्ग का सिधार गये। अस्तु, दिल्ली में इनकी शिक्षा समाप्त भी न होने पाई माता का दिमाग़ पहले ही से ठीक नहीं रहता था। थी कि घरवाले इन्हें खोजते हुए दिल्ली पहुँचे और इन्हें
पिता की उसकी छोटी अवस्था में मृत्यु और वापस घर पकड़ ले गये। माता का पागलपन-इन दोनों का फल यह हुआ कि ये किस्मत के उलट-फेर देख ही रहे थे कि इसी बालक अल्ताफ़ हुसेन को प्रारम्भिक शिक्षा भी उचित समय सन् १८५७ का ग़दर छिड़ गया और कई साल तक रीति से नहीं मिली । साधारण मुसलिम बालकों की तरह इन्हें बेकार घर बैठना पड़ा। बाद में ये दिल्ली के एंग्लो वह भी एक मकतब में बैठा दिया गया और वहाँ उसकी अरबिक स्कूल में शिक्षक हो गये। उन्हीं दिनों हैदराबाद शिक्षा का श्री गणेश 'कुरान' रटाकर किया गया। थोड़ी के प्रधान मंत्री उक्त स्कूल को देखने श्राये। उन्होंने सी अरबी और फ़ारसी भी उसे पढ़ाई गई, किन्तु उतनी ही अरबी, फ़ारसी और उर्दू के विद्वानों, कवियों और लेखकों जितनी कि एक सामान्य से सामान्य मुसलिम को कुरान को कुछ छात्रवृत्तियाँ दीं। ७५) मासिक की एक छात्रवृत्ति श्रादि पढ़ लेने के लिए काफ़ी समझी जाती है। हाली को भी मिली। पीछे वह बढ़ाकर १००) तक कर दी
अल्ताफ़ होनहार बालक था। उसे विद्या प्राप्त करने गई जो अन्त समय तक उनको मिलती रही। का शौक था । वह चाहता था कि अधिक से अधिक उस समय तक उर्दू के कवि काफ़िये और रदीफ़ शिक्षा प्राप्त करे, पर उसके सम्बन्धी कुछ और ही खयाल के ही चक्कर में पड़े थे। क्रमबद्ध कविता करने की किसी में थे। उन्होंने १७ वर्ष की आयु में ही अल्ताफ़ की शादी की रुचि न थी। कहते हैं, कर्नल हाल राइड ने उस समय कर दी। शिक्षा-प्राप्ति में बाधा पड़ने लगी। लाहौर में एक कवि-सभा स्थापित की और उसमें समस्या
पर जिसे जिस बात की सच्ची लगन होती है वह अपने पूर्ति के बदले निर्धारित विषय पर कवितायें पढ़ा जाना
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