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संख्या ६]
सम्पादकीय नोट
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मा
निराली थी। पुस्तकालय-सम्बन्धी अनेक ज्ञातव्य नक्शे, बी० तालुकदार थे। उन्होंने अपने भाषण में पुस्तकालयों चार्ट तथा ग्राफ़ आदि विशेष सूझ-बूझ के साथ तैयार की उपयोगिता और गाँवों में भ्रमणशील पुस्तकालयों कर यहाँ रक्खे गये थे, जिनसे यह जान पड़ता था कि की आवश्यकता बतलाई और बतलाया कि उन्नाव-ज़िले देश में तथा विदेशों में पुस्तकालयों के प्रचार तथा प्रसार में ३४ पुस्तकालय हैं। परिषद् के मनोनीत सभापति का काम कहाँ कहाँ कैसा हो रहा है। जो हस्तलिखित लखनऊ-विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डाक्टर परांजपे पुस्तकें यहाँ प्रदर्शित की गई थीं उनमें कई एक विचित्र ने अपने विद्वत्तापूर्ण भाषण-द्वारा पुस्तकालयों की तथा अप्राप्य थीं। इसी दिन रात्रि में कविवर सनेही जी आवश्यकता, उपयोगिता और महत्ता पर प्रकाश डाला। के सभापति में कवि-सम्मेलन बड़ी सफलता के साथ सम्पन्न डाक्टर राधाकुमुद मुकर्जी, डाक्टर राधाकमल मुकर्जी, हुआ, जिसमें स्थानीय कवियों के सिवा कानपुर, लखनऊ डाक्टर बी० एस० राम के भी भाषण हुए। इसके बाद आदि के कवियों ने भी भाग लिया था।
उन्नाव-ज़िला-पुस्तकालय-संघ की स्थापना का प्रस्ताव ___ दूसरे दिन पंडित कृष्ण विहारी जी मिश्र की अध्यक्षता स्वीकृत हुआ और सदस्यों की एक कार्य-समिति नियुक्त में साहित्य-परिषद् का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। स्वाग- की गई । इस अधिवेशन में जिले के ग्रामीण पुस्तकालयों ताध्यक्ष कुँवर गुरुनारायण बी० ए० तालुक़दार ने अपने के प्रतिनिधि अच्छी संख्या में शामिल हुए थे। भाषण-द्वारा उपस्थित विद्वानों का स्वागत किया । इसके अन्त में सायंकाल 'हिन्दी-साहित्य-पुस्तकालय' का बाद राय बहादुर पंडित शुकदेवविहारी मिश्र बी० ए० ने १८ वा वार्षिकोत्सव लखनऊ-विश्वविद्यालय के वाइस परिषद् का उद्घाटन किया। आपने अपने भाषण में चांसलर डाक्टर परांजपे की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुअा। हिन्दी साहित्य-पुस्तकालय की सेवा का संक्षिप्त वर्णन प्रधान मंत्री बाबू जयनारायण कपूर ने रिपोर्ट पढ़कर करके हिन्दी-साहित्य की प्रगति का संक्षिप्त दिग्दर्शन सुनाई । तदुपरान्त कई पुरस्कार वितरित किये गये। कराया। इसके बाद परिषद् के सभापति पंडित कृष्ण- इस प्रकार मौरावाँ का यह साहित्यिक समारोह बड़ी विहारी मिश्र ने अपना भाषण पढ़ा, जो विद्वत्तापूर्ण ही धूमधाम तथा सफलता के साथ समाप्त हुआ और इसके नहीं, पर्याप्त रोचक भी था । कानपुर तथा लखनऊ के इस रूप में समाप्त होने का सारा श्रेय पुस्तकालय के मंत्री अनेक प्रतिष्ठित विद्वानों ने इस परिषद् में भाग लिया। श्रीयुत जयनारायण जी कपूर को है। इस अवसर पर श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने 'साहित्य और जाति' पर एक अत्यन्त ही पाण्डित्यपूर्ण भाषण
हिन्दी में प्रान्तीयता किया तथा अपनी दो कवितायें भी सुनाई। भाषणों के जान पड़ता है, हिन्दी में भी प्रान्तीय भेद-भावों का पश्चात् कुछ प्रस्ताव स्वीकृत हुए, जिनमें 'अवध प्रान्तीय अब ज़ोर बढ़ेगा। अभी तक हिन्दी का उर्दू से ही संघर्ष साहित्य-मण्डल' की स्थापना का प्रस्ताव मुख्य है। था और अब उसके लिए यह एक नई विपत्ति आ खड़ी कार्यवाही २ बजे समाप्त हुई। इस बैठक में लखनऊ- हुई है। कुछ दिन हुए जब 'व्रजमण्डल' नाम की संस्था विश्व विद्यालय के वाइस चांसलर डाक्टर परांजपे, डाक्टर की स्थापना हुई थी तभी यह आशंका हुई थी कि इसके राधाकमल, डाक्टर राधाकुमुद, डाक्टर बी० एस० राम, अनुकरण पर आश्चर्य नहीं, कहीं और भी मंडल अस्तित्व डाक्टर व्रजमोहन शर्मा, डाक्टर मजूमदार प्रभृति विद्वान् में ना जायँ और इस प्रकार हिन्दी के कार्यकर्ताओं भी उपस्थित थे।
की शक्ति संकुचित कार्यक्षेत्रों में बँट जाय । से वह __ उक्त परिषद् के अधिवेशन के बाद तीसरे पहर उन्नाव- आशंका ठीक ही होती नहीं आ रही है, किन्तु उसके पुस्तकालय-सम्मेलन का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। साथ एक और पुछल्ला लगाकर सामने आ रही है। स्वागताध्यक्ष श्रीयुत लाला हरीराम सेठ बी० ए०, एल-एल० उस दिन पटना में जो साहित्यिक समारोह हुअा था उस
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