Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 621
________________ संख्या ६] सम्पादकीय नोट ५६७ समझा । इसमें सन्देह नहीं है कि राष्ट्रीय सरकार को ईराक के भारतीय पिछली बार की तरह बहुमत नहीं प्राप्त हुआ, साथ ही महायुद्ध के समय ईराक में जाकर अनेक भारतीय उसके अनन्य समर्थक प्रसिद्ध मज़दूर नेता तथा भूतपूर्व बस गये थे । तब से वे वहाँ रह कर शान्तिपूर्वक तरह प्रधान मंत्री मिस्टर राम्से मैक्डानल इस बार बुरी तरह तरह के उद्योग-धन्धों में लगे रहे हैं । परन्तु कहा जाता चुनाव में हार गये, तथापि मिस्टर बाल्डविन के दल की है, अब वहाँ की सरकार भारतीयों को वहाँ रहने का पूरी जीत रही और इस चुनाव में उनके वैदेशिक मंत्री सर हुक्म नहीं दे रही है। अभी हाल में उसने कुछ भारतीयों सैमुअल होर तो बहुत ही अधिक वोटों से जीते। इससे को निकल जाने का आदेश भी दे दिया है । ईराक की वर्तजान पड़ता है कि ब्रिटेन का लोकमत बाल्डविन की नीति मान सरकार की स्थापना प्रकारान्तर से भारतीय सेनाओं के का समर्थक है । बाल्डविन की सरकार ने इटली और रक्त बहाने पर ही हुई है। नहीं तो अरबों के उस भूभाग अबीसी निया के मामले में राष्ट्र-संघ को जो महत्त्व प्रदान पर तो तुर्को की ही सत्ता स्थापित थी। परन्तु वहाँ की किया है तथा योरप के राष्ट्रों की, विशेषकर जर्मनी की, अरब-सरकार, जान पड़ता है, यह बात भुला देना चाहती सैनिक तैयारी को देखकर आत्मरक्षा के विचार से वह है और जिस ब्रिटिश सरकार की बदौलत आज उसे यह जो अपनी सामरिक तैयारी करना चाहता है उसका इस स्वतन्त्रता का युग नसीब हुअा है उसी के शान्त प्रजाजनों चुनाव से समर्थन ही हुआ है। राष्ट्र का इस तरह बल को वह अपने वहाँ रहने नहीं देना चाहती। प्रसन्नता की पाकर ब्रिटेन भविष्य में इटली और अबीसीनिया के मामले बात है, भारत सरकार का ध्यान ईराक के भारतीयों की में अधिक दृढ़ता दिखावेगा और इस बीच में जर्मनी ने इस परिस्थिति की ओर आकृष्ट किया गया है, और इस नौ-सेना-सम्बन्धी पिछले समझौते की अवहेलना करके सम्बन्ध में वह समुचित कार्रवाई कर रही है। देखना अपना नौ-बल पहले की अपेक्षा दूने के लगभग कर लिया है कि भारतीय ईराक में रहने पाते हैं या उपनिवेशों के है उसकी भी बाल्डविन की सरकार उपेक्षा नहीं कर प्रवासी भारतीय जैसा ही उनके भी साथ व्यवहार होता है । सकेगी। निस्सन्देह योरप की राजनैतिक स्थिति इस समय बहुत अधिक बिगड़ गई है। ऐसी दशा में निःशस्त्रीकरण फिलीराइन-द्वीप की स्वाधीनता और विश्वशांति के पचड़े में पड़कर ब्रिटेन अपने हाथों संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति रूज़वेल्ट ने फ़िलीपाइन-द्वीपों अपने पैर में कुल्हाड़ी मार लेने की भूल कदापि नहीं को १५ नवम्बर से स्वतन्त्र घोषित कर दिया है और वहाँ करेगा। ब्रिटेन की राष्ट्रीय सरकार राष्ट्र संघ का पाया के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति एम० एल० कूँजन ने स्वाधीन मज़बूत बनाये रखने में दृढ़ता तो दिखायेगी ही, साथ ही फ़िलीपाइन का शासन-भार अपने ऊपर ले लिया है। इस साम्राज्य की रक्षा के विचार से वह अपना सामरिक बल प्रकार इन द्वीपों के निवासियों की स्वाधीनता की माँग अप टु-डेट ले आने की समुचित व्यवस्था भी करेगी। इसमें आखिर में पूरी हो गई । जब से यहाँ के शासन की सन्देह नहीं है कि ब्रिटेन की इस दृढ़ नीति का योरप की बागडोर स्पेन के हाथ से निकलकर अमरीकावालों के वर्तमान अवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा और आश्चर्य हाथ में आई है तभी से यहाँ के निवासी अपनी स्वाधीनता नहीं कि उस दशा में कोई ऐसा उपाय भी हाथ लग जाय के लिए लड़ते आये हैं। अन्त में अमरीकावालों को उन्हें जिससे योरप कुछ समय के लिए एक बार फिर सँभल बाध्य होकर स्वाधीन कर देना पड़ा और यदि यहाँ के जाय और वह नाशकारी महायुद्ध के मार्ग से भी विमुख निवासी अगले १० वर्षों में अपनी शासन करने की क्षमता हो जाय। इससे अधिक आनन्ददायक बात संसार की का सम्यक् परिचय प्रदान करेंगे तो १० वर्ष के बाद शान्ति के लिए और क्या हो सकती है ? अमरीका की सेना भी वहाँ से बुला ली जायगी और फ़िलीपाइन पूर्णरूप से एशिया का एक स्वाधीन राज्य हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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