Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 626
________________ ५७२ सरस्वती [ भाग ३६ देकर उनको सम्मानित किया था। भारतीय नाट्यशास्त्र के कम से कम अपने विश्वास के ही आदमियों को, जहाँ पर उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। उनका नैपाल डाके अधिक संख्या में पड़ते हैं, बन्दूक आदि रखने का का इतिहास भी प्रसिद्ध है। भारत और उसकी संस्कृति भी अधिकार प्रदान कर देती । लाठियों से बन्दूकधारी के प्रति उनका बहुत अधिक अनुराग था। प्रोफ़ेसर डाकुओं का सामना करना वास्तव में एक प्रकार का सिलवेन लेवी जाति के यहूदी थे और पेरिस में रहते उपहासास्पद साहस माना जायगा। रिपोर्ट के साल सबसे थे। उनकी मृत्यु से भारतीय संस्कृति का एक ऐसा मर्मज्ञ अधिक डाके गोरखपुर (४३), मेरठ (४०), कानपुर विद्वान् सदा के लिए उठ गया है, जिसके अभाव की पूर्ति (३६), इटावा (३७), अलीगढ़ (३१) और बस्ती (२८) में जल्दी नहीं होगी। पड़े। कुल डाके ६७८ पड़े, जिनमें ३३२ डाकों में डाकू शस्त्रधारी थे । डाकों की यह समस्या वास्तव में विशेष रूप पुलिस की वार्षिक रिपोर्ट से ध्यान देने के योग्य है । पुलिस को इसे हल करने के सन् १६३४ के साल की प्रान्तीय पुलिस की रिपोर्ट हाल लिए कोई कारगर योजना कार्य में परिणत करना चाहिए । में प्रकाशित हुई है । १६३४ का साल पुलिस के लिए एक प्रचलित पद्धति से वही होता रहेगा जो अब तक होता प्रकार से सन्तोषप्रद रहा । शान्ति कायम रखने तथा अप- आया है। राधों के रोकने या उनका पता लगाने अादि अपने मुख्य काम करने की उसे पूरी सुविधा प्राप्त रही। क्योंकि स्वर्गीय श्रीयुत गोपाल कृष्ण देवधर रिपोर्ट के साल सत्याग्रह-आन्दोलन बन्द रहा और पूना की सर्वेन्ट अाफ़ इंडिया सोसायटी के प्रधान कुल ८३ ही राजनैतिक मामले हुए जब कि १६३३ में श्रीयुत गोपाल कृष्ण देवधर का १७ नवम्बर को बम्बई में की संख्या ८७६ थी। अतएव १६३४ में वह राज- स्वर्गवास हो गया । आप इस सोसायटी के संस्थापकों में नैतिक झमेलों से मुक्त रही। हाँ, उनके स्थान में थे। सन् १६०४ में जिन देशभक्तों के दल को लेकर साम्प्रदायिक दंगों में उसे अवश्य फँसना पड़ा । १६३४ में माननीय गोखले ने उक्त संस्था की स्थापना की थी उनमें ऐसे ६० दंगे हुए थे जब कि १६३३ में कुल ६ दंगे हुए एक अाप भी थे। सन् १६२७ से आप उक्त संस्था वे थे । रिपोर्ट के लेखक पलिस के इन्स्पेक्टर जनरल मिस्टर प्रधान पद पर आसीन रहे हैं। इधर डेढ़ महीने से आप एस० टी० हालिन्स ने लिखा है कि 'आज-कल देश लगातार रोगग्रस्त रहे । अापकी मृत्यु से देश का एव में साम्प्रदायिक मनोमालिन्य बहुत बढ़ा-चढ़ा है। सन् . प्रमुख लोक-सेवक उठ गया है। आप उन लोक-नेता १६०२ में जब मैं यहाँ के पुलिस-विभाग में नियुक्त हुअा में रहे हैं जिनका एकमात्र व्रत लोक-सेवा में अहर्निश था तब यह समस्या इतने उग्र रूप में नहीं थी।' निरत रहना रहा है । आप सदा प्रसिद्धि से दूर रहे, परन्तु डकैतियों के सम्बन्ध में रिपोर्ट में लिखा है कि इस देशवासियों को दैवी विपत्ति से पीड़ित देखते ही बार साल कुल ६७८ डकैतियाँ हुई, और पिछले कई वर्षों की उनकी सेवा करने को सबसे पहले पहुँचते थे । अापवे अपेक्षा यह संख्या कम है । इस सम्बन्ध में निरस्त्र ग्रामीणों प्रयत्न से सहयोग-समितियों का काफ़ी देशव्यापी प्रचा की भी प्रशंसा की गई है जो सशस्त्र डाकुओं का मुकाबिला हुआ है। अापने सदा ऐसे ही रचनात्मक कार्यों में लग करने में अपने साहस का परिचय दिखलाने लगे हैं। रहना अपने जीवन का ध्येय बना लिया था। सभाओं वे इन्स्पेक्टर जनरल साहब ने लिखा है कि इस सम्बन्ध में सभापति बनने या व्याख्यान झाड़ने का रोग आपके ग्रामीणों को प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है कि वे डाकुओं नहीं था । आपने लोक-सेवा का अपना एक मार्ग चुन का डटकर मुकाबिला किया करें । परन्तु पुलिस-विभाग लिया था और चुपचाप जीवन-पर्यन्त बराबर उसी पर का यह प्रोत्साहन अधिक सार्थक होता यदि वह उन ज़िलों चलते गये। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ लोक-नेता के निधन से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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