Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 627
________________ संख्या ६] सम्पादकीय नोट वास्तव में भारत की भारी क्षति हुई है, जिसकी महज में इसके सिवा पैदा होनेवाले बच्चों की मृत्यु का लेखा पूर्ति नहीं होगी। देखिए । इनकी मृत्यु का वार्षिक औसत दो लाख है, अर्थात् प्रति घंटे २० बच्चे मरते हैं । इसी प्रकार हज़ार वाल-विवाह की समस्या पीछे २४५ च्चे देनेवालियों की भी मृत्यु हो जाती है । सर्वभारतीय महिला-सभा के अन्तर्गत एक बाल- यही नहीं, एक हज़ार नवजात शिशु पीछे १८१ मर विवाह-विरोधिनी कमिटी है। इसकी मंत्री श्रीमती लक्ष्मी- जाते हैं और कहीं कहीं यह संख्या ४०० तक पहुँच जाती मेनन ने हाल में एक बुलेटिन प्रकाशित की है। उसमें है। यह बाल-विवाह की कैसी विभीषिका है ! ये इतने उन्होंने लिखा है कि बाल-विवाह की बुराई समाज से दूर ही आँकड़े ग्राँग्वे खोलने के लिए काफ़ी हैं । यह सब करने के लिए यह आवश्यक है कि पहले तत्सम्बन्धी पूना के 'मरहटा' से लिया गया है। ग्राँकड़ों का अध्ययन किया जाय । उदाहरण-स्वरूप उन्होंने सन् १६३१ की मनुष्य-गणना के १५ वर्ष की इलाहाबाद-यूनिवर्सिटी के दो नये डाक्टर उम्र के नीचे की विवाहित कन्यायों के अांकड़े दिये हैं, इलाहाबाद-यूनिवर्सिटी में हाल में दो नये डाक्टरों की जो इस प्रकार हैंएक वर्ष की ८ फीसदी एक से २ वर्ष का दो से ३ " २० ,,,, ४ से ५ १६.६" ३८.१ ., " . १० से १५ " बाल-विधवानों के ग्राँकई इस प्रकार हैं१ वर्ष उम्र की १,५१५ १ " से २ वर्ष की १,७८५ Pr " से ४ " ६,०७६ ४ " से ५ " १५,०१६ ५ " से १० " ५.०५.४८२ १०" से १५" उन्होंने लिखा है कि सन १६२१ की गणना के अनुसार एक वर्षे की उम्र की ६,०६६ कन्यायें विवाहिता थीं, परन्तु सन् १९३१ की गणना में इस उम्र की विवाहित कन्याओं की संख्या ४६,०८२ हो गई। इसी प्रकार सन् १६२१ में एक वर्ष की उम्र की बाल-विधवाओं [डाक्टर धीरेन्द्र वर्मा] को संख्या ७५६ थी, परन्तु १६३१ में उनकी संख्या वृद्धि हुई है। इनमें एक हिन्दी के सुपरिचित श्रीयुत १,५१५ हो गई। धीरेन्द्र वर्मा हैं। आप यूनिवर्सिटी में हिन्दी-विभाग के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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