Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 620
________________ ५६६ सरस्वती [भाग ६६ रहेगी मस्या के कारण विफल हो गया और अब तो यही प्रकट हो रहा वह चीन को अपने राजनैतिक प्रभाव' के अन्तर्गत है कि इस सम्बन्ध में राष्ट्र-संघ आर्थिक बायकाट करने मानता है। परन्तु कदाचित् चीन या पाश्चात्य राष्ट्रों को के सिवा और कुछ नहीं करेगा। और आर्थिक बायकाट जापान का यह दावा मान्य नहीं है और चीन के सौभाग्य का इटली पर जैसा चाहिए वैसा प्रभाव भी नहीं पड़ेगा, या दुर्भाग्य से ब्रिटेन उसकी आर्थिक अवस्था का सुधार क्योंकि आस्ट्रिया, हंगरी, पुर्तगाल के सिवा उसे अमरीका करने में विशेष यत्नवान् दिखाई दे रहा है। इसमें सन्देह के संयुक्त-राज्यों का भी एक तरह का सहयोग प्राप्त रहेगा। नहीं है कि यदि चीन की आर्थिक अवस्था राह पर आ ऐसी दशा में राष्ट्र-संघ की बायकाट-सम्बन्धी ढुलमुल जायगी तो उसकी बाहर भी साख बढ़ जायगी और उसे नीति अन्त में निरर्थक ही सिद्ध होगी, क्योंकि इटली इस राष्ट्रोद्धार के भिन्न भिन्न कार्यों के लिए आवश्यक ऋण परिस्थिति का सामना करने के लिए पहले से ही काफ़ी भी मिल सकेगा। परन्तु यह सब होने कैसे पावेगा ? तैयारी कर चुका है, इसके सिवा आगे भी उसको अपने राष्ट्रीय सरकार की उन्नति के मार्ग में बाधाओं का मित्र राष्ट्रों से बहुत कुछ अावश्यक सहायता मिलती ही अभाव नहीं है । अभी उस दिन शंघाई में जापान का राष्ट-संघ की इस नीति का वास्तव में इटली पर एक अधिकारी मार डाला गया है. जिससे नाराज़ होकर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वह अबीसीनिया को सम्यक- जापान ने अपना एक जंगी जहाज़ शंघाई भेजकर राष्ट्रीय रूप से पददलित कर निकट भविष्य में स्वाधिकारमुक्त सरकार से उस घटना के सम्बन्ध में जवाब तलब किया कर लेने में अधिकांश में सफल-मनोरथ होगा। है । इसके सिवा उसकी यह शिकायत एक ज़माने से बनी हुई है कि चीन में जापान के विरुद्ध बराबर आन्दोलन चीन की समस्या होता रहता है। यही कारण है उसने अभी हाल में ब्रिटेन चीन की आर्थिक अवस्था सुधारने के लिए ब्रिटेन के चीन को अन्तर्राष्ट्रीय ऋण देने के प्रस्ताव को अस्वीकार ने सर फ्रेडरिक लीथ-रास नाम के एक अर्थविशेषज्ञ को कर दिया है। यही नहीं, उत्तरी चीन के पाँच प्रान्तों का चीन भेजा है । ये वहाँ की राष्ट्रीय सरकार के आय-व्यय एक अलग संघ बना देने का उसने एक सफल षड्यंत्र के बजट, चलन सिक्के तथा विनिमय आदि को व्यवस्थित रच डाला है। प्रबल जापान के ऐसे मनोभाव के रहते करने में चीन की सरकार को परामर्श दे रहे हैं, साथ ही चीन की राष्ट्रीय सरकार अपने पैरों खड़ी होने में कहाँ तक तत्सम्बन्धी योजनाओं को कार्य में परिणत करने में भी सफल-मनोरथ होगी, इस सम्बन्ध में उतनी दृढ़ता से सहयोग कर रहे हैं। इन्हीं के परामर्श के अनुसार अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। तथापि इस राष्ट्रीय सरकार ने हाल में एक आर्डीनेंस निकाल कर सिलसिले में वहाँ की सरकार जो प्रयत्न कर रही है उसके चाँदी और चाँदी के सिक्कों की निकासी एक-दम बन्द लिए वह प्रशंसा के योग्य है। कर दी है और लेन-देन के लिए नोट निकालने का भी आयोजन किया है। इसके सिवा वहाँ एक केन्द्रीय बैंक ग्रेट-ब्रिटेन का नया चुनाव स्थापित करने का भी प्रबन्ध हो रहा है, जिसे नोट ग्रेट-ब्रिटेन का नया चुनाव हो गया और उसकी निकालने का भी अधिकार प्राप्त होगा। यह बैंक राजनैतिक पिछली राष्ट्रीय सरकार की फिर जीत हुई। इस जीत का प्रभाव से स्वतंत्र रह कर अपना कार्य करेगा। परन्तु मतलब यह है कि अनुदारदल के नेता मिस्टर बाल्डविन राष्ट्रीय सरकार की यह सब कार्रवाई जापान को पसन्द की शासन-प्रणाली की विजय हुई या यही बात इस नहीं है। वह नहीं चाहता कि ब्रिटेन या और कोई तरह भी कह सकते हैं कि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति राष्ट्र चीन की इस प्रकार मदद करे। पाश्चात्य राष्ट्रों की के समय ब्रिटेन की जनता ने मिस्टर बाल्डविन के ही ऐसी सहायता को वह उनका हस्तक्षेप समझता है, क्योंकि कन्धों पर साम्राज्य की हितरक्षा का भार रखना सुरक्षित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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