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संख्या ६]
सामयिक साहित्य
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गरीब श्रमजीवी
बम्बई जैसे शहर में कैसे गुज़ारा करता होगा, यह एक मजदूरों की आर्थिक स्थिति कहाँ तक बिगड़ गई विचारणीय प्रश्न है। है, इसका अनुमान बम्बई-सरकार के 'श्रमकार्यालय' किसानों के समान मज़दूर भी ऋण के भारी बोझ से की एक रिपोर्ट से भले प्रकार विदित होता है। 'नवयुग' लदे हुए हैं । ७४ ७४ प्रतिशत मज़दूर कर्जदार हैं। पठानों व उसका विवरण अपने अग्रलेख में इस प्रकार देता है- मारवाड़ी साहूकारों को वे १८॥ प्रतिशत से १५० रुपया
बम्बई-सरकार के श्रमकार्यालय की ओर से बम्बई के प्रतिशत सूद दे रहे हैं । औसतन सूद की मात्रा ७५ प्रतिशत १४६६ मज़दूर-परिवारों की जाँच की गई थी। यह जाँच है। बारह पाना महीना प्रतिशत देना पड़ता है। साल में मई १९३२ से जून १६३३ तक की गई थी। उसकी १५५ रुपया सूद में प्रति परिवार को देना पड़ता है। रिपोर्ट भयंकर है। इसको पढ़कर विश्वास नहीं होता कि सोचिए कि ६०० रुपया सालाना आमदनी में से २५६ रुपया बम्बई के मज़दूर इस अवस्था में किस प्रकार अपना जीवन जिस परिवार के घर का भाड़ा देने और सूद देने में चले बिता रहे हैं।
जाते हैं उसके पास खाने और पहनने के लिए क्या बचा रिपोर्ट से मालूम होता है कि ७४.७४ प्रतिशत परि- रहता होगा ? मजदूरों को मिल में प्रतिदिन कम-से-कम वार एक कोठरी में गजारा कर रहे हैं। कई जगह एक ६-१० घंटे खड़े खड़े काम करना पड़ता है। इस कडे काम कोठरी में तो दो दो परिवार तक रह रहे हैं । दो कोठरियों में उनकी जो जीवन-शक्ति खर्च होती है उसकी भरपाई के में रहनेवाले परिवारों की संख्या २५ प्रतिशत है। इन लिए उन्हें पर्याप्त और पौष्टिक भोजन की दरकार है। मगर पिंजरों में मानव-जीवन रह सकता है, यह एक आश्चर्य २८-२६ रुपया मासिक आमदनीवाला परिवार घी, दूध कैसे की बात क्या नहीं है ? इन पिंजरों में रहनेवाले यदि खा सकता है। यदि इस अवस्था में उनकी जीवन-शक्ति अकाल में काल के ग्रास हों या रोग के जीवन भर के लिए क्षीण हो रही है, कार्य क्षमता घट रही है, तो यह
र हों या जीवन में ही बूढ़े हो जायँ और हताश होकर स्वाभाविक है। अपने गाँवों को लौट जायँ तो इसमें अाश्चर्य क्या है ? यदि मिल-मालिक चाहते हैं कि भारतीय मज़दूर __ प्रति परिवार में ३.०७० श्रादमी हैं | एक परिवार की योरपीय मज़दूरों के समान कार्यक्षम हों तो उनका फर्ज़ है आमदनी ५० रुपया है। प्रत्येक व्यक्ति की मासिक आमदनी कि वे मज़दूरों की अवस्था उन्नत बनावें, उनकी ज़रूरियात बारह रुपया हुआ है। प्रति परिवार का मासिक खर्च ४५ को पूरा करें और उनके प्रतिकूल वातावरण पैदा करें। रुपया १५ आना ह पाई है । बमुश्किल पांच रुपया उनके मिल-मालिक और पूँजीपति मज़दूरों की उपेक्षा करके अपना पास बचता है। मगर यह रिपोर्ट दो साल पहले की है। रोज़गार ही नहीं बिगाड़ रहे हैं, बल्कि अपनी मौत को भी अब मज़दूरों का पगार कम हो गया है, स्थिति पहले से निमन्त्रण दे रहे हैं । भी बदतर हो गई है, इसलिए कल्पना की जा सकती है कि मज़दूर किस प्रकार आज-कल गुज़ारा करते होंगे।
मसोलिनी के व्यङ्गय चित्र ___ एक मज़दूर परिवार की आमदनी का औसतन १२.८१ योरप में इधर मुसोलिनी की सबसे अधिक चर्चा हो प्रतिशत कोठरी के किराये में जाता है। जिन मज़दूरों की रही है। सभ्यता के प्रचार के नाम पर वह अबीसीनिया
आमदनी कम है उनकी आमदनी का १७ प्रतिशत घर के की स्वाधीनता का अपहरण करने के लिए इटली को कहाँ किराये में चला जाता है । हाँ, जिनकी आमदनी कुछ लिये जा रहा है, यह तो आनेवाला समय बतावेगा, पर ज्यादा है उनकी आमदनी का कमरे के भाड़े में १०.१६ वर्तमान समय में उसका स्वरूप क्या है, यह योरप के समाप्रतिशत जाता है। जो भाड़े में ही लगभग ७ रुपया खर्च हो चारपत्रों में प्रकाशित होनेवाले व्यङ्गय-चित्रों से स्पष्ट हो जाते हैं। तब ४ आदमियों का एक परिवार ४३ रुपया में जाता है। ऐसे बहुत-से व्यङ्गय-चित्रों का संकलन लन्दन
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