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संख्या ५]
सम्पादकीय नोट
कि हिन्दुओं में प्रचलित पशुबलि के रोकने के लिए ऐसे यही नहीं, वे ऐसी अनर्गलता का तूफान उठाकर खड़ा अत्र के प्रयोग की क्या ज़रूरत है जब स्वयं उनका एक कर देते हैं कि सिवा चुप रह जाने के उस सम्बन्ध में विशाल समूह उस प्रथा का घोर विरोधी है। हिन्दु यों कुछ लिखने का माहम ही नहीं होता। जब कोरी सम्मतियाँ में कुछ नामधारी शाक्त स्मात ही इस प्राचीन प्रथा देकर ये मानी लेखक अपने कथन का समर्थन करना के हामी हैं । उनका विशाल समूह तो जैनधर्म के अहिंसा- चाहते हैं तब रनम वाद-विवाद करना विशुद्ध वितण्डावाद का या तो अनुयायी है या सुधारवादी नये समाजों वाद करना हो जाता है । परन्तु इस सम्बन्ध में मौन हो के अन्तर्भुक्त है । फिर जैनधर्म के प्रमुख नेता तो हिन्दुओं जाने या उनकी अनर्गलता की उपेक्षा करने में भी तो के मन्दिरों की बलि प्रथा का बन्द करने का अान्दोलन हिन्दी के अहित की ही मम्भावना है । ऐसी दशा में क्या अब तक बराबर करते ही पाये हैं। ऐसी दशा में शर्मा करना चाहिए, यह वास्तव में एक प्रश्न है । हिन्दी के जी जैसे वीर पुरुषों को इस साधारण प्रथा का उन्मूलन हितचिन्तकों का इस हल करने के लिए प्रवृत्त होना करने के लिए ग्रामरण उपवास का ग्राश्रय लेना महात्मा चाहिए । जी के इस अमोघ अस्त्र का दुरुपयोग करना ही कहा जायगा । तथापि जो कुछ हुया मा हो गया। भविष्य के स्वर्गीय श्रीमती गमश्वरी देवी 'चकोरी' लिए उन्हें सावधान होकर ही अनशन-यन्त्र का प्रयोग श्रीमती रामेश्वरी देवी चकोरी के स्वर्गवास का करना चाहिए । जब उनके अान्दोलन को देश के बड़े बड़े ममाचार सुनकर किस हिन्दी प्रेमी का हृदय दुःखी न नेताओं की सहानुभूति प्राप्त है तब उसे वे अन्य उपायों में भी भले प्रकार सफलता प्रदान कर सकते हैं ।
एक प्रश्न हिन्दी के क्षेत्र में इस समय पालोचकों का अच्छा दौर दौरा है। जिसे देखो वही अपनी मनमानी सम्मतियों को लेखबद्ध कर उने ग्रालोचना के नाम से लोगों की आँखों में धूल झोंकने का उपक्रम कर रहा है । और तो और, इस प्रवृत्ति को हिन्दी की उच्च संस्थायें तथा दिग्गज नेता तक पुरस्मर करते दिखाई दे रहे हैं । इस पद्धति के हिन्दी में प्रचलित हो जाने में माहित्यिकों में जो कटुता बढ़ रही है उससे हिन्दी का अहित ही हो रहा है। खेद की बात है कि लेखकों का ध्यान इस योर नहीं जा रहा है और वे अपनी मनमानी करने के सरल मार्ग का अनुधावन करना ही अपने लिए श्रेयस्कर समझ रहे हैं । लेखकों की यह प्रवृत्ति बाम्नव में निन्दनीय है, पर गुटबन्दी के वर्तमान युग में इसकी और कोई ध्यान नहीं दे
स्वर्गीया श्रीमती रामेश्वरीदेवी मिश्र 'चकोरी'] रहा है। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति की किसी निराधार सम्मति का विरोध करने का साहम करता होगा। आपने अल्यावस्था में ही सुन्दर कवितायें लिखकर है तो उसे सम्मतिदाता के चेले लोग काटने दौड़ते हैं। हिन्दी की कवियित्रियों में अपना एक विशेष स्थान बना
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