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सरस्वती
[भाग ३६ ।
चीन को अन्तर्राष्ट्रीय कर्ज़ दिये जाने या अन्तर्राष्ट्रीय आघात न करे और ब्रिटेन इस बात का उसे विश्वास सहयोग से चीन में किसी भी रचनात्मक कार्य के किये दिलावे कि वह उसको कच्चा माल प्राप्त करने में कभी जाने के सम्बन्ध में जापान का प्रसिद्ध पत्र 'असाही' कोई बाधा न उपस्थित करेगा। लिखता है-"जापान का यह मत है कि वह चीन में ब्रिटेन
और अमरीका के साथ बराबरी के दर्जे पर सहयोग नहीं कर सकता। सहयोग के प्रश्न पर जापान तभी विचार भीलों की वर्तमान स्थिति कर सकता है जब ग्रेट ब्रिटेन और अमरीका दोनों चीन अमृतपुरा के भील-आश्रम की ओर से श्रीयत में उसका नेतृत्व स्वीकार कर लें।" जापान अपने परीक्षितलाल मजूमदार और श्रीयत छोटेलाल मोद उद्देश की पूर्ति कैसे करेगा ? चीन और पश्चिम के बीच गांधी के हस्ताक्षर से भीलों के सम्बन्ध में एक में वह मूसलचन्द बनकर कैसे कूदेगा ? चीन में वह ग्रेट- विवरण-पत्रिका प्रकाशित हुई है। उससे भीलों को ब्रिटेन या अमरीका या लीग का हाथ कैसे पकड़ेगा? वर्तमान अवस्था का भली भाँति परिचय मिलता है। जापान चाहता है कि चीन की सरकार इतनी मज़बूत हो उक्त विवरण से एक अंश हम यहाँ उद्धृत करते हैंकि उसे वह सब प्रकार की सुविधायें दे दे. परन्तु इतनी इन जातियों का निवास खास कर पहाड़ी प्रदेश में मज़बूत न हो कि उसके लिए कभी कोई दरवाजा बन्द है । शहर का जीवन इन लोगों को अगम्य है । इनके करे । उसकी वर्तमान नीति यह है कि चीन से अमरीका निवास के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं, कहीं कहीं तो सरकार का प्रभाव उठ जाय और उसका स्थान जापान ले ले। इन लोगों से रहने की जगह का किराया भी वसूल करती इसी उद्देश से वह गत तीस वर्षों से कार्य कर रहा है। है। उच्च जातियों के ग्रामों में ये लोग ग्राम के चारों x x x x
पोर किले के समान बसते हैं। ग्राम के आस-पास गंदगी, समस्या इस प्रकार है । जापान की वर्तमान नीति कीचड़ तथा पानी भर जाने से जहाँ मच्छरों की और चीन में उसका वर्तमान हाथ ब्रिटिश व्यापार और भरमार हो, जहाँ लोग झाड़ा-जंगल फिरते हों, ऐसी गंदी चीन में लगी ब्रिटिश पूँजी के लिए भारी खतरा है। जगह में इनका निवास है । झोपड़ियाँ एक दूसरे से बहुत x x x यदि यह समस्या यों ही बनी रही तो ब्रिटिश दूर दूर बाँधते हैं । समुदाय-रूप में रहना इनको पसन्द नहीं साम्राज्य और जापान में आगामी तीस वर्षों के भीतर है। स्वतन्त्रताप्रिय होने के कारण ये लोग पहाड़ों में संघर्ष हो सकता है । ब्रिटिश साम्राज्य के कच्चे माल के रहना पसन्द करते हैं। उद्गम-स्थान-मलाया, बोर्नियो, आस्ट्रलिया और जावा इन लोगों को जंगल में रहते हुए भी झोपड़ी बाँधने जापान के मार्ग में पड़ते हैं। इनकी रक्षा ब्रिटेन की के लिए बाँस आदि सामान भी दुर्लभ है। इनके झोपड़े जहाज़ी शक्ति पर ही निर्भर है । और जापान को कच्चे टूटे-फूटे बाँस, फूस तथा ताड़ के पत्तों से बने होते हैं ।
की कितनी भख है. यह स्पष्ट है। कठिनाइयाँ और इस समय जहाँ कि लोग घर बनाने में लोहा तथा सीमेंट खतरे बहुत बड़े हैं । अमरीका की यह नीति जान पड़ती है का उपयोग कर रहे हैं, वहाँ इनको फूस भी नसीब कि वह पश्चिमी प्रशान्त महासागर से हट जाना चाहता नहीं होता। है। दस वर्ष में वह फ़िलीपाइन को स्वाधीन करके चला इनकी झोपड़ियों का दरवाज़ा इतना छोटा होता है जायगा । ब्रिटेन की जङ्गी नीति क्या होगी, इससे हमें काई कि बिना सिर झुकाये अन्दर नहीं घुस सकते। इतनो बहस नहीं, परन्तु आर्थिक प्रश्नों के सम्बन्ध में ब्रिटेन और नीची तङ्ग तथा छोटी झोपड़ी में ही इनके ढोर, बालजापान की पारस्परिक ग़लतफ़हमी दूर की जा सकती बच्चे, बकरे, बकरियाँ, मुर्गे और एक-दो कुत्ते साथ ही है । वह इस तरह कि जापान चीन में ब्रिटेन के हितों पर साथ रहते हैं। इतनी तंग, गंदी तथा छोटी झोपड़ी में
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