Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 611
________________ संख्या ५ ] परन्तु हवाई जहाज़ों पर उड़नेवालों में ६,३७८ आदमियों में सिर्फ़ एक आदमी घायल होगा । मान लीजिए कि सामयिक साहित्य पका पड़ोसी जी बहलाने के लिए किसी मित्र के साथ श्रासमान की सैर करने चला गया । श्रापका क्या खयाल है । वह ज़िन्दा लौटेगा या मरा हुआ ? गत वर्ष ग़ैर सर कारी हवाई जहाज़ों पर १३,६७, २८८ श्रादमी उड़े। इन हवाई जहाज़ों ने ७,५६,०२,१५२ मील का चक्कर लगाया । दुर्घटनायें केवल १,५४६ हुई और केवल २,७११ श्रादमी इन दुर्घटनाओं के शिकार हुए। पर इनमें केवल ७८४ घायल हुए और इन घायलों में भी आधे आदमियों को सिर्फ़ मामूली खरोंचें लगीं। इससे यह सिद्ध है कि यदि आप अपने शहर में किसी मित्र के निजी हवाई जहाज़ पर भी उड़ें तो आपकी जान को घर की अपेक्षा ७४ प्रति शत कम खतरा है | X X X प्रायः देखा गया है कि लोग जहाँ अधिक सुरक्षा का अनुभव करते हैं वहाँ विचित्र दुर्घटनायें हो जाती हैं । विज्ञान और शिक्षा की समुचित व्यवस्था होते हुए भी ऐसी दुर्घटनायें प्रतिवर्ष बढ़ती जाती हैं। बहुत-से लोग स्वयं अपनी रामकुर्सी पर से लुढ़कते देखे गये हैं । आप चाहे जहाँ विचरिए, आसमान में, समुद्र में, या ज़मीन पर, परन्तु यह न भूलिए कि घर संसार में सबसे अधिक खतरनाक स्थान सिद्ध हुआ है। गत वर्ष आदमियों को अङ्ग भङ्ग कर देनेवाली ७,६८,२१,००० दुर्घटनायें हुई । परन्तु इनमें आधी से अधिक घरों में हुई । अमरीका में बीमारी से उतने बच्चे नहीं मरते जितने दुर्घटनाओं से मर जाते हैं। अगले २५ वर्षों में प्रत्येक पाँच आदमियों में एक को घायल रहने के लिए तैयार रहना चाहिए । बाहर दुर्घटनात्रों से जितने आदमी मरेंगे, घरों में उनकी अपेक्षा दूने प्राण गँवायेंगे। सबसे अधिक लोग गिरकर या आग में जलकर प्राण गँवाते हैं । गिरने की घटनायें अधिकतर सोने के कमरों में होती हैं और जलने की रसोईघरों में । स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट से पता चलता है कि सबसे अधिक लोग कुर्सियों पर बैठते या उठते समय, सीढ़ियों पर चढ़ते या उतरते समय, बिस्तर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५५७ पर लेटते या उठते समय गिरते हैं । सबसे कम दुर्घटनायें स्नान गृह में होती हैं और उनसे भी कम हवाई जहाज़ों में । सुदूर पूर्व को नवीन समस्या उपर्युक्त शीर्षक से लंदन से प्रकाशित होनेवाले 'राउंड टेबुल' नामक त्रैमासिक पत्र की नवीन संख्या में एक विद्वत्तापूर्ण लेख प्रकाशित हुआ है । उस लेख में अकाट्य तर्कों द्वारा यह बात सिद्ध को गई है कि सुदूर पूर्व की स्थिति अव वह नहीं रही जो पहले थी और जापान ने सुदूर पूर्व का राजनैतिक मानचित्र सर्वथा बदल दिया है। नीचे हम उस लेख से कुछ अवतरण देते हैं १९३५ का वर्ष चीन और पश्चिम के सम्बन्ध में एक नया अध्याय खोलता है । पिछले चार वर्षों से जापान की नीति बड़ी उग्र रही है और गत जून में वह इस लायक़ हो गया कि उसने घोषणा कर दी कि उत्तरी चीन में उसी की इच्छा के अनुसार राजनैतिक चक्र चलेगा । उसने संसार के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि उसने सुदूर पूर्व का मानचित्र बदल दिया है और उसकी यह घोषणा कि चीन और पाश्चात्य शक्तियों का सम्बन्ध उसके नियंत्रण में होना चाहिए, निरी घोषणा नहीं है । सन् १६२२ से संयुक्तराज्य और योरप के राज्य यह नीति बर्तते आ रहे हैं कि चीन पूर्ण स्वाधीन माना जाय, उसका अङ्ग भङ्ग न किया जाय और प्रशान्त महासागर में सबके एक निश्चित सीमा तक जङ्गी जहाज़ रहें ताकि सामूहिक रक्षा की समुचित व्यवस्था बनी रहे । १६२२ से १६३१ तक चीन में गृहयुद्धों के होते हुए भी वाशिंगटन की संधि के अनुसार यह स्थिति बनी रही । परन्तु सितम्बर १६३१ से ऐसी घटनायें होने लगीं जिन्होंने इस सन्धि पर पानी फेर दिया। चीन की पूर्णता जाती रही, उसका अङ्ग भङ्ग शुरू हो गया और उसके साथ ही प्रशान्त महासागर में जङ्गी बेड़ों का वह निश्चित अनुपात भी नहीं रहा । १६३५ की बदली हुई परिस्थिति के लिए नवीन नीति निर्धारित करनी होगी और नवीन सिद्धान्त बनाने पड़ेंगे । X X X X www.umaragyanbhandar.com

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