Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 610
________________ ५५६ सरस्वती पर सेना और युद्ध - सामग्री का भेजा जाना अभी जारी है। यह स्पष्ट है कि ब्रिटेन बड़े क्षोभ के साथ पीछे हट गया है, पर उसने युद्ध की भावना का अभी त्याग नहीं किया है और वह अपनी पीछे हटने की स्थिति को 'सामूहिक कार्यवाही' की आड़ में छिपाना चाहता है । कहते हैं, प्रत्येक काले बादल में एक उज्ज्वल रेखा होती । यही बात अबीसीनिया के बारे में भी कही जा सकती । युद्ध करते करते वह गिर जायगा, परन्तु गिरते गिरते भी विश्व की आत्मा में एक प्रकार की हलचल उत्पन्न कर जायगा । इससे संसार की दलित जातियों में एक नई विचारधारा बह निकलेगी । समस्त साम्राज्यवादी बेचैनी के साथ इसका अनुभव कर रहे हैं और जेनरल स्मट्स ने अपने हाल के एक भाषण में इसका उल्लेख भी किया है । दूसरी ओर साम्राज्यवादी देशों के विचारशील लोगों ने अपने आपसे यह पूछना आरम्भ कर दिया है कि क्या इस प्रकार उपनिवेश क़ायम करने का कार्य न्यायो चित है । उदाहरण के लिए प्रोफ़ेसर लस्की ने 'मैन्चेस्टर गार्जियन' में लिखा है कि ग्रेट ब्रिटेन के अफ्रीका में जितने उपनिवेश हैं वे सब राष्ट्रसंघ को सौंप दिये जायँ । श्रीयुत लैन्सबरी ने कुछ समय हुए यह अपील की थी कि संसार के समस्त कच्चे माल का सब मनुष्यों के समान हित की दृष्टि से उपयोग किया जाय । यहाँ तक कि सर सैमुएल होर जैसे अपरिवर्तनवादी ने जिनेवा कहा था कि वे मिस्टर लैन्सवरी के प्रस्तावों के आधार पर की गई किसी भी जाँच-पड़ताल का स्वागत करेंगे । इस तरह वे साम्राज्यवादी भी जिनके अधिकार में यथेष्ट उपनिवेश हैं, एक प्रकार के पश्चात्ताप का अनुभव कर रहे हैं । दो तरीके हैं जिनसे साम्राज्यवाद का अन्त हो सकता है । या तो कोई साम्राज्यवाद विरोधिनी संस्था उसको उलट दे या साम्राज्यवादी देश स्वयं आपस में लड़कर निर्बल पड़ जायँ । यदि इटली की साम्राज्य- लिप्सा ने दूसरे मार्ग को प्रशस्त कर दिया तो अबीसीनिया का बलिदान व्यर्थ नहीं जायगा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ ख़तरा कहाँ है— मनुष्य की जान को सबसे अधिक खतरा कहाँ है- घर में या घर से बाहर ? इस प्रश्न के उत्तर में श्रीयुत एण्ड्र आर० बून नाम के एक अमरीकन लेखक ने नवम्बर की 'पपुलर सायंस' में एक लेख छुपाया है, जिसमें उन्होंने अमरीका में होनेवाली समस्त दुर्घटनाओं से यह सिद्ध किया है कि मनुष्य की जान को सबसे अधिक खतरे घर में ही हैं। उनका कहना है कि हवाई जहाज पर मीलों ऊपर उड़नेवाले आदमी की जान उतने ख़तरे में नहीं है जितने खतरे में उस आदमी की जान है जो अपने घर में कुर्सी पर बैठा उपन्यास पढ़ रहा है। इसके प्रमाण में वे लिखते हैं गत वर्ष अमरीका के संयुक्त राज्य में दुर्घटनाओं से एक लाख आदमी मरे और आधी से अधिक जानें घर में गई । यदि आप घर में बैठे उपन्यास पढ़ रहे हैं या सीढ़ी पर चढ़ रहे हैं या ठंड से जमे हुए नल के पानी को ढीला कर रहे हैं तो आपकी जान को उस आदमी के मुक़ाबिले में जो हवाई जहाज़ पर बैठा किसी हुश्रा के दूर शहर को उड़ा जा रहा है, २६६ गुना अधिक खतरा है । आप कहेंगे यह अविश्वसनीय है। अच्छा, ज़रा इस शुष्क विषय को समझने में चित्त लगाइए । मैं यहाँ कुछ अङ्क देकर अपने इस कथन को सत्य प्रमाणित करूँगा । जिस गति से पिछले वर्ष दुर्घटनायें हुई हैं, यदि उसी गति से इस वर्ष भी दुर्घटनायें हुई तो इस वर्ष अमरीका की १२ करोड़ ५० लाख की जन-संख्या में ५१,८४,५०० मनुष्य दुर्घटनाओं के शिकार होंगे। कुछ सीढ़ी से फ़िसल कर गिरेंगे, कुछ कुर्सियों पर से उलट जायँगे, कुछ खासकर स्त्रियाँ रसोईघर में कपड़ों में आग लगने के कारण जल जायँगी । हवाई जहाज़ों पर ५,६१,३७० या कुछ अधिक लोग ४,६०,००,००० मील उड़ेंगे । इनमें सिर्फ़ ३५७ आदमी ७३ दुर्घटनाओं के शिकार होंगे। इन ३५७ में भी बेदाग़ बच जायँगे। उनके खरोंच भी नहीं लगेगी। घर में बैठे रहनेवालों में २० श्रादमियों में एक मी अवश्य किसी न किसी तरह घायल जायगा । । www.umaragyanbhandar.com

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