Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 608
________________ ५५४ सरस्वती [भाग ३६ की साधारण स्वच्छता से दूर रक्खे जाते हैं। कानून बन रखने के लिए अपने क्लब में गैर अँगरेज़ों को नहीं पाने जाने पर भी बाल-विवाह अपनी तलवार चलाता जा रहा देते तो इसमें किसी को क्यों आपत्ति हो ? मेरा उत्तर यह है। ग़रीबी का अब भी बड़ा विस्तार है और अमीरों में है कि जिस क्लब में केवल अधिकारीवर्ग के ही लोग सार्वजनिक हित-भावना का अभाव है। परन्तु जब हम लिये जायँ वह सर्वथा प्राइवेट नहीं कहा जा सकता। यह देखते हैं कि ये युगों के रस्म-रवाज हैं तब इधर जो इन्हीं क्लबों के कारण भारतीयों और अँगरेज़ों में भेद की सुधार हुए हैं वे कम नहीं जान पड़ते। इसमें सन्देह नहीं खाई बढ़ती जा रही है, जो अन्य स्थिति में कदापि नहीं बढ़ कि भारत के बहुत-से भागों में नया खून जोश मार रहा सकती थी। यह दुःख की बात है कि वर्तमान वायसराय है और पुरानी बेड़ियाँ टूटती चली जा रही हैं। का जिन्होंने बम्बई में विलिङ्गडन-क्लब की स्थापना की __ हम 'मदर इंडिया' जैसी किताबें पढ़ते हैं और कल्पना है, अनुकरण नहीं किया गया। रियासतों में यह भेद नहीं करते हैं कि भारतवर्ष मन्दिरों, महलों और खंडहरों का है। वहाँ भारतीय और अँगरेज़ साथ साथ बराबरी के अर्द्धशिक्षित देश है और हम सोचते हैं कि ईश्वर ने हम दर्जे पर खेलते और ग़प लड़ाते हैं । यही भाव हमें ब्रिटिश सभ्यों को वहाँ न्याय और कानून की स्थापना करने को भेजा भारत में भी बर्तना चाहिए। है। हमारे देशवासी भारत की जो सेवा कर रहे हैं उससे महारानी विक्टोरिया की यह घोषणा कि उनके मैं इनकार नहीं करता। ब्रिटिश गवर्नमेंट के हाथों भारत साम्राज्य में सब बराबर हैं, तभी सफल हो सकती है जब की महान् उन्नति हुई है। परन्तु भारत में जो बौद्धिक और हम भारतीयों के साथ उनके देश में भी समानता का आध्यात्मिक परिवर्तन हो रहा है उसकी कद्र करने में हम बर्ताव करें । असमर्थ रहे हैं। हमने किपलिंग की यह बात मान ली है कि पूर्व और पश्चिम कभी नहीं मिल सकते, परन्तु वास्तव में अबीसीनिया का भेद और उसका पाठ देखा जाय तो भारत में दोनों मिलकर एक हो रहे हैं। "अबीसीनिया का भविष्य अन्धकार में है। और यदि हमें भारत में रहना है तो हमें भारतीयों की उस पर कुछ भी विपत्ति पड़े वह संसार को एक इच्छा से रहना होगा। किसी कदर भी हो पिछले वर्षों में पाठ पढ़ा जायगा। वह पाठ क्या है ? यही कि इस हमारी नीति कुछ ऐसी ही रही है । यद्यपि भारत में महान् बीसवीं शताब्दी में भी कोई राष्ट्र तभी तक स्वाधीन राजनैतिक परिवर्तन हो गये हैं और हो रहे हैं, तथापि अभी रह सकता है जब तक वह जन और अस्त्र-शस्त्र से यह शिकायत बनी हुई है कि हम भारतीयों के साथ बराबरी तथा आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से पूर्ण रूप से का बर्ताव नहीं करते। किसी अँगरेज़ से बातें करते समय पुष्ट है।" यह श्रीयुत सुभाषचन्द्र बोस के उस लेख उनके दिल में यह बात बनी रहती है कि वे एक शासक की प्रारम्भिक पंक्तियों का आशय है जो नवम्बर से बातें कर रहे हैं और स्वयं शासित हैं । वर्तमान वायसराय के 'माडर्न रिव्यू' में छपा है और जिसे उन्होंने योरप और लेडी विलिङ्गडन भारतीयों से सहानुभूति के साथ मिलते से लिखकर भेजा है। आपने योरप में प्रकाशित हैं, परन्तु किसी छोटे अँगरेज़ कर्मचारी का भी उपेक्षा का अँगरेज़ी और फ्रेंच पत्रों से उद्धारण देकर यह सिद्ध व्यवहार इस सब पर पानी फेर सकता है। अब मैं एक किया है कि इटली, ब्रिटेन और फ्रांस तीनों अबीसीअत्यन्त नाजुक प्रश्न पर आता हूँ। मेरा तात्पर्य अँगरेज़- निया को बाँट लेना चाहते हैं। इस सम्बन्ध में क्लबों में भारतीयों को सम्मिलित करने से है। जब तक आपने लंदन के 'न्यू लीडर' का लेख उद्धृत किया है। ऐसे क्लब रहेंगे, भेद-भाव बना रहेगा। अँगरेज़ यह कहते उसका कुछ अंश इस प्रकार हैहैं कि क्लब व्यक्तिगत जीवन की बात है और यदि कुछ "......१६०६ में तीनों साम्राज्यवादी शक्तियोंअँगरेज़ भारत में भी अपने घर का वायुमंडल बनाये ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने आपस के एक समझौते पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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