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सामयिक साहित्य
संख्या ६ ]
हस्ताक्षर किये, जिससे यह ध्वनित हुआ कि ये तीनों शक्तियाँ आगे चलकर अबीसीनिया को आपस में बाँट लेंगी। समझौते में यह छलपूर्ण सिद्धान्त तब भी स्वीकार किया गया था कि अबीसीनिया का अङ्ग भङ्ग नहीं किया जायगा । परन्तु वास्तव में इस समझौते से अँगरेज़ों को नील नदी के शिरोभाग की धारा का अधिकार मिल गया । पश्चिमी
नया में इटली की प्रभुता स्वीकार कर ली गई और सीनिया की रेलवे लाइन पर फ्रांस का अधिकार समझा गया ।
“विश्वव्यापी महायुद्ध के साथ इस साम्राज्यवादी डकैती का भी दूसरा अध्याय शुरू हुआ । सन्धि के अनुसार इटली जर्मनी और आस्ट्रिया के साथ बँधा था । परन्तु फ्रांस और ब्रिटेन ने उसे अपनी ओर फोड़ लिया । तीनों में एक गुप्त सन्धि हुई, जिसके अनुसार इटली को यह वचन दिया गया कि उसके पूर्वी अफ्रीका के उपनिवेशों की सीमायें अबीसीनिया के अन्दर बढ़ा दी जायँगी । महायुद्ध के बाद अँगरेज़ों ने टाना झील पर बाँध बाँधकर नील नदी के ऊपरी जल पर अधिकार सुरक्षित कर लेना चाहा । इटली ने अँगरेज़ों के इस अधिकार को इस शर्त पर स्वीकार करने की माँग पेश की कि अँगरेज़ भी पश्चिमी आस्ट्रेलिया में इटली के पूर्ण आर्थिक प्रभुत्व को स्वीकार कर लें । परन्तु अँगरेज़ों ने समझा कि वे बिना इटली की सहायता के भी अधिकार बनाये रह सकते हैं, इसलिए उन्होंने इटली की शर्तों को ठुकरा दिया और यह दलील पेश की कि १६०६ की सन्धि के अनुसार पश्चिमी अबीसीनिया में इटली का पूर्ण अधिकार नहीं माना जा सकता । परन्तु ६ वर्ष बाद जब ब्रिटेन को इटली की सहायता की श्रावश्यकता पड़ी तब पश्चिमी अबीसीनिया में उसने उसका आर्थिक प्रभाव स्वीकार कर लिया ।
" तत्र एक अघटित घटना घटी। अबीसीनिया ने ब्रिटेन और इटली के इस पारस्परिक लेन-देन को नापसन्द किया और लीग आफ़ नेशन्स के सामने इसका भण्डाफोड़ करने के लिए उन्हें धमकी दी। कार्य में विफल होने पर ब्रिटेन ने नई चालें चलीं । उसने अबीसीनिया को ब्रिटिश सुमालीलैंड से होकर समुद्री किनारे तक ६०० वर्ग
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मील भूमि देने का लालच दिया । अबीसीनिया इस लालच में आ जायगा, इसका ब्रिटेन को इतना अधिक विश्वास था कि उसने १९२६ में अबीसीनिया का नया नक़शा तैयार कराया जिसमें 'ज़ेलिया' का बन्दरगाह अबीसीनिया के अन्तर्गत दिखाया गया । परन्तु ब्रिटेन के साम्राज्यवादियों को आश्चर्य चकित करके अबीसीनिया ने इसे स्वीकार कर दिया । वह अपनी स्वाधीनता खोने को तैयार नहीं था । "
इटली जानता है कि योरप की राजनैतिक स्थिति ऐसी है कि ब्रिटेन इस समय उसके साथ युद्ध नहीं छेड़ सकता, इसलिए वह परिस्थिति से लाभ उठाकर जितना देश जीत सके, जीत लेना चाहता है । तब क्या होगा ? क्या बेचारा अबीसीनिया बे-मौत मर जायगा और संसार देखता रहेगा ? क्या इस बुराई से कुछ भलाई भी होगी ? सुभाष बाबू लिखते हैं
चूँकि योरप की राजनीति इस समय फ्रांस का विशेष हाथ है, इसलिए दो बातों का होना अवश्यम्भावी है । पहली बात यह कि बाह्य रूप से राष्ट्रसंघ की धाक बनाये रहने के लिए ग्रार्थिक बायकाट का सामूहिक रूप से कुछ प्रयत्न किया जायगा । इसका मार्ग स्वयं मुसोलिनी ने अपने २ आक्टोबर के व्याख्यान में खोल दिया है। उसमें उन्होंने कहा है कि चाहे जितनी सुविधा का सामना करना पड़े, ग्रार्थिक नियंत्रण हम बर्दाश्त कर लेंगे। दूसरी बात यह कि इटली के विरुद्ध कोई फ़ौजी कारवाई न की जायगी और न अबीसीनिया में उसको विफल करने का ही कोई प्रयत्न किया जायगा, क्योंकि मुसोलिनी कह चुका है कि ऐसे प्रयत्नों को वह युद्ध का निमन्त्रण समझेगा और युद्ध का उत्तर युद्ध से देगा और मध्य-योरप की राजनीति से अलग होकर जर्मनी को मनमानी करने का अवसर दे देगा । परन्तु इतने से ही यह नहीं कहा जा सकता कि युद्ध का खतरा अब नहीं रहा । भूमध्य सागर में ब्रिटेन का जङ्गी बेड़ा अभी पड़ा है और ब्रिटेन ने इटली की प्रार्थना पर उसे वहाँ से हटाना अस्वीकार कर दिया है। इसके अतिरिक्त ब्रिटेन के समाचार-पत्रों से यह विदित होता है कि युद्ध की सीमा
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