Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 591
________________ योरप--जैसा कि मैंने उसे देखा ३--इटली में मेरा प्रथम सप्ताह लेखक, श्रीयुत हरिकेशव घोष किसी समय रोमन साम्राज्य और संस्कृति की सारे संसार में बड़ी धाक थी। रोमन साम्राज्य के प्राचीन वैभव के ध्वंसावशेष अब भी इटली में यत्र-तत्र देखने को मिलते हैं। इस लेख में श्रीयुत हरिकेशव घोष ने उसी का बहुत ही संक्षिप्त और सुन्दर ढङ्ग से परिचय दिया है साथ ही इटली की वर्तमान प्रगति का भी उन्होंने समुचित ज़िक्र किया है। पईद बन्दर से ब्रिडिसी की तीसरे दिन यूनान के निकट सयात्रा बड़ी सुहावनी थी। के छोटे-छोटे द्वीप दृष्टिगोचर होने लालसागर से आगे बढ़ने लगे। उनमें से कुछ में लोग बसे पर ठंड मालूम पड़ने लगी और हुए थे, परन्तु अधिकांश चट्टानी हमें गर्म कपड़े पहनने पड़े। पहाड़ होने के कारण उजाड़ थे। भूमध्य-सागर अत्यन्त शान्त था । चौथे दिन लगभग आठ बजे प्रात:धूप चटकीली थी, विलक्षण मन्द काल हम ब्रिडिसी पहुँचे । मैं और वायु बह रहा था और दिन मनो मेरे साथ कुछ और मित्रों ने रम और ठंडे थे। यात्रियों ने इस ब्रिडिसी में उतरने का निश्चय ऋतु का पूर्णरूप से आनन्द लिया। किया, इसलिए हमने अपने इरादे हमारे मित्र श्रीयुत के०... तो की सूचना 'पसर' को दी और अपनी प्रसन्नता को बिना प्रकट किये न रह सके। हमें अपने पासपोर्ट पर 'विसा' मिल गया। हमने वे इतने जोर जोर से गाने और नाचने लगे कि बहुत- अपना रुपया पहले ही इटालियन सिक्के-लिरा में से गम्भीर लोगों ने उनकी कड़ी आलोचना अवश्य बदल लिया था, जो हमें एक पौंड में साठ के हिसाब की होगी। सारांश यह कि उन उज्ज्वल दिनों ने से मिला। उस समय युद्ध की चर्चा नहीं थी, इसप्रत्येक व्यक्ति को आनन्द-विभोर कर दिया था। लिए विनिमय की दर स्थिर थी ! चुङ्गी-घर के ५३९ Shree SudharmaswamiGyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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