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सरस्वती
[भाग ३६
है और इसके सर्वाङ्गपूर्ण बनाने में आपने अपनी ओर गुप्त प्रेम की भिक्षा माँगता है । उधर जगदीश बाबू की से कुछ उठा नहीं रक्खा है और इसमें जो यत्र-तत्र बहन युवती रमा से भी विवाह करना चाहता है, इसके त्रुटियाँ हैं उनकी ज़िम्मेदारी इसके प्रणेता पर नहीं लिए वह रमा के पिता को उधार रुपया देता है। घुरह डाली जा सकती, क्योंकि प्रणेता ने जहाँ जो मुहावरा अपनी कन्या के प्रेम की बात सुनकर उसे घर से निकाल प्रयुक्त पाया तथा जिसका जो किया गया अर्थ उन्हें प्राप्त देता है । वह अात्म-हत्या करने के लिए रेल की पटरी पर हा उसे उन्होंने वहाँ से उठाकर इसमें रख दिया है। जा लेटती है। जगदीश उसकी रक्षा करता है। इसी बीच उदाहरण के लिए प्रथम पृष्ठ के ३ नंबर के 'अंकुश देना में सूरजराम सुशीला को बदमाशों द्वारा उड़ा ले जाता है या मारना' को ही लेते हैं । इसका दूसरा अर्थ उन्होंने और एक अगम्य स्थान में कैद कर रखता है । ठीक 'ग्राधीन बनाना या वश में कर लेना' लिखा है। पर विवाह के समय रमा घर से निकल भागती है. सशीला भी यह अर्थ ठीक नहीं है । अर्थ होना चाहिए 'प्रेरित करना', कारागृह से चल खड़ी होती है। दोनों नदी तट पर मिलती 'पागे बढ़ाना' श्रादि । यद्यपि इस तरह की त्रुटियों या हैं और कलकत्ते जाकर एक वृद्ध मेम की सहार मतभेदों की इस पुस्तक में कमी नहीं है, तथापि पुस्तक व्यापार से धन कमाती हैं। घुरह तथा जगद बड़े काम की है, विशेषकर शिक्षकों और विद्यार्थियों के कलकत्ते पहुँचते हैं। वहाँ वे दोनों अपनी खोई हुई लिए । इसमें आये हुए मुहावरों की संख्या भूमिका में नहीं निधियों को पाते हैं। सूरजराम अपने पन्द्रह हज़ार रुपयों बताई गई है । अन्दाज़ से साढ़े तीन हज़ार से ऊपर ही के लिए जगदीश के पिता की सारी जायदाद नीलाम उनकी संख्या होगी। इस मॅझोले आकार की २८८ पृष्ठ पर चढ़वाता है। उसी समय खबर पाकर जगदीश की पुस्तक का मूल्य १॥) है । पुस्तक सजिल्द है। मिलने घुरहू तथा सुशीला के साथ वहाँ पहँचता है और का पता-श्री एम० वि० शेषाद्रि एंड कंपनी, बलेपेट, अपने पिता की रक्षा करता है। सूरजराम का कन्याओं के बँगलोर सिटी।
ने श• भगाने के अपराध में पकड़वा देता है। पिता की सम्मति २-प्रेम की देवी या वीर हरिजन बालिका- से जगदीश सुशीला से विवाह करने को तैयार होता है। लेखक, श्रीयुत गणेशप्रसाद श्रीवास्तव, प्रकाशक, श्री उसी समय यह प्रकट होता है कि सुशीला घुरहू चमार की चिरञ्जीलाल तुलसान, ३ दहीहट्टा स्ट्रीट, कलकत्ता हैं। नहीं, राजमंत्री विश्वेश्वर शर्मा की पुत्री है । राजकोप का मूल्य आठ आने ।
भाजन बनकर भागते समय उन्होंने अपनी पुत्री को एक यह एक नाटक है। इसका कथानक इस प्रकार अपरिचित व्यक्ति को सौंपा था और वह अपरिचित व्यक्ति है-सुशीला घुरहू चमार की युवती पुत्री है। एक दिन वह घुरहू चमार था। अपनी बकरियाँ चराते हुए गाँव के पास की नदी के किनारे हमारी सम्मति में सुशीला को विश्वेश्वर शर्मा की जा पहुँचती है। वहाँ वह गाना गाती है । जगदीश औरस सन्तान सिद्ध करने की विशेष आवश्यकता न थी। एक ब्राह्मण ज़मींदार का पुत्र है। वह घमता हुआ ऐसा करके लेखक ने वीर हरिजन बालिका का अन्त में संयोग से उधर जा निकलता है और गाना सुनकर ब्राह्मण-कुमारी बनाकर पुस्तक की सामयिकता तथा गायिका के पास जाता है। जाते समय मार्ग में पैर उद्देश दोनों को क्षति पहुँचाई है । 'प्रेम ही सच्चा धर्म है'फिसलकर वह नदी में गिर पड़ता है, जहाँ मगर के लेखक का यह उद्देश सुशीला को हरिजन बालिका ही बनी अाक्रमण से सुशीला नदी में कूद कर उसके प्राण बचाती रहने देने से सम्भवतः अधिक स्पष्टतया सफल हो सकता है। दोनों का प्रेम हो जाता है और उनकी प्रेम-लीला को और राजा तथा मंत्री-सम्बन्धी सारे अन्तर्कथानक की भी गाँव के कुछ लोग देख लेते हैं। सूरजराम नाम का एक आवश्यकता न पड़ती। पुस्तक पढ़ने में मन लगता है पचास वर्ष का धनी बुड्ढा है। वह भी सुशीला से और अभिनय तथा चित्रपट दोनों में ही इसकी कथा का
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