Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 600
________________ सरस्वती [ भाग ३६ आचरण श्रारम्भ से अन्त तक पश्चिमी ढंग का, और स्पष्ट हो जाता है । पुस्तक की भूमिका में प्रवासी भारतीयों गुप्ता का पूर्वी ढंग का है। मदन अपने आचरण में की समस्याओं के विशेषज्ञ श्रीयुत स्वामी भवानीदयाल जी दोनों विचारों से अच्छी बातों को ही अपनाने का प्रयत्न संन्यासी ने इन बातों पर, आपबीती घटनाओं-द्वारा, अच्छा करता है । कुछ दिन के बाद उसकी भारतीय विचारधारा प्रकाश डाला है। प्रत्येक भारतहितैषी को यह पुस्तक मन्द पड़ जाती है और पश्चिमी लोगों का महवाम उसे पढ़नी चाहिए। अधिक प्रिय हो जाता है। उसे सैर-सपाटे अधिक पसन्द होते -भारतीय सहकारिता-आन्दोलन-लेखक, हैं यहाँ तक कि लंदन के समुद्री किनारे की सैर में वह मिस श्रीयुत शंकरसहाय सकसेना, एम० ए० बी० काम। जोन्स के फंदे में फँस जाता है। मदन को मिम जोन्म पता-व्यवस्थापक, भारतीय ग्रन्थमाला, वृन्दावन, हैं। के प्रेम में विशुद्धता का भान होता है, पर कुछ ही दिनों में मूल्य २) है। उसके आचरण पर उसे सन्देह भी होने लगता है। मिस प्रोफ़ेसर शंकरसहाय सकसेना बरेली-कालेज में अर्थजोन्स अपनी वाक्चतुरता से मदन को फिर विश्वास शास्त्र के अध्यापक हैं और अपने विषय के विशेषज्ञ हैं। दिलाती है और उससे मदन का मेल-जोल अधिक बढ़ इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय ग्रामों की अनेक आर्थिक जाता है। किन्तु अचानक मदन को फिर उसके भ्रष्टा- समस्याओं तथा सहकारिता-द्वारा उनको हल करने के चरण का प्रमाण मिल जाने से उद्विग्नता उत्पन्न हो जाती उपायों पर अच्छा प्रकाश डाला है। पुस्तक विस्तृत है। वह अपनी हत्या का प्रयत्न करता है, पर दैवयोग अध्ययन तथा परिश्रम से लिखी गई है। और अपने से बच जाता है । इस घटना के बाद उसकी विचारधारा विषय की हिन्दी में संभवतः एक ही पुस्तक है। श्राजविशुद्ध हो जाती है और वह सदा के लिए सचेत हो कल जब देश का ध्यान ग्राम-संगठन और ग्राम-सुधार की जाता है। श्रोर लगा हुआ है, इस पुस्तक में वर्णित उपायों से इस अन्य घटनायें प्रसंगवश ही इसमें लाई गई हैं। कार्य में बड़ी सहायता मिल सकती है । पुस्तक की भाषा इस पुस्तक को पढ़कर भारतीय विद्यार्थी लंदन में जाकर सरल और विषयोपयोगी है तथा गेट-अप सुन्दर है। अधिक चेतनता के साथ अधिक बातें सीख सकता है। आशा है, हिन्दी-प्रेमी इस पुस्तक का उचित श्रादर करेंगे। पुस्तक सुपाठ्य और उपयोगी है। ९--कोटिल्य के आर्थिक विचार- लेखक, श्रीयुत - गंगासिंह जगनलाल गुप्त तथा श्रीयुत भगवानदास केला। पता७-प्रवासी भारतीयों की वर्तमान समस्यायें- व्यवस्थापक, भारतीय ग्रन्थमाला, वृन्दावन । मूल्य |||-) है। लेखक, श्रीयुत प्रेमनारायण अग्रवाल बी० ए०, प्रकाशक, कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अँगरेज़ी तथा हिन्दी में यद्यपि मानसरोवर-साहित्य-निकेतन, मुरादाबाद हैं । मूल्य १) है। कई अनुवाद हो चुके हैं, तथापि उनके ग्रन्थ के विषयों __ अपने विषय की यह एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। प्रवासी को सरल रूप में रखनेवाली एक पुस्तक की आवश्यकता भारतीयों की समस्यायें भारत के भविष्य जीवन का एक थी। इन लेखकों ने इस पुस्तक को लिखकर इस कमी को कठिन प्रश्न है। इस पुस्तक में लेखक ने बड़ी रोचक दूर किया है । इस पुस्तक के पढ़ने से मालूम होगा कि ईसा शैली तथा ज़ोरदार भाषा में प्रवासी भारतीयों की समस्याओं से ३२२ वर्ष पूर्व हमारे देश में लोक-कल्याण की भावना की ओर देश का ध्यान आकृष्ट किया है। अपने प्रवासी से प्रेरित होकर भारतीय मनीषियों ने कैसे प्रौढ़ ग्रन्थ लिखे भाइयों की कठिनाइयों की ओर से हम लोग कितने उदा- थे। उस समय की रीति-नीति तथा समाज-व्यवस्था के सीन हैं और उनके ऊपर किये गये अन्याय तथा अत्या- बारे में इस पुस्तक से हम पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ।। चारों का विरोध न करके हम अन्याय और अत्याचार प्राशा है, पुस्तक का उचित आदर होगा जिसके कि वा को कैसे प्रोत्साहन देते हैं, यह इस पुस्तक के पाठ से सर्वथा योग्य है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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