Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 589
________________ सख्या ६] खेलों का महत्त्व ५३७ यथासम्भव वर्ष में एक-दो मास का अवकाश प्राप्त साधनम । प्रत्येक खेल मांस-पेशियों को कुछ न कुछ करने का प्रयत्न करता है ताकि वह किसी समुद्रतटस्थ पष्ट करते ही हैं । फुटबाल, क्रिकेट आदि कुछ ऐसे अथवा पार्वतीय स्थान पर जाकर और खेलों में खेल हैं जिनसे शरीर की प्रायः सम्पूर्ण पेशियों पर मम्मिलित होकर मनोरंजन करे तथा अपना स्वास्थ्य ज़ोर पड़ता है, वे सभी बलवान और पुष्ट होती हैं। सुधारे। गम्भीर मानसिक व्यापार और चरित्र- इसलिए पूर्ण शारीरिक विकास के लिए एक से गठन में खेल सहायक ही होते हैं, बाधक नहीं होते। अधिक खेलों में ऋतु के अनुसार भाग लेना चाहिए, इस सत्य को पाश्चात्यों ने समझा है। फलतः आज क्योंकि खेल एक दूसरे के पूरक हैं, अर्थात् जो कुछ वे प्रत्येक विषय में, जीवन-व्यापार के प्रत्येक विभाग कमी एक में रह जाती है वह दूसरे खेल के द्वारा पूरी में, हमसे बहुत आगे बढ़े हुए हैं। हो जाती है। खेलों से शारीरिक बल एवं वेग के __ परन्तु खेलों के शिक्षाप्रद प्रभाव पर बहुत ही अतिरिक्त लाघवता तथा शीघ्रता के गुण भी शरीर कम लोग ध्यान देते हैं। धार्मिक शिक्षा से बहुत कुछ को प्राप्त होते हैं। इसके सिवा इनसे एक प्रकार की नैतिक उन्नति हो सकती है, पुस्तकाध्ययन मस्तिष्क शोभा, मनोहरता, शरीर-लालित्य तथा चेष्टा-सुगको पुष्ट करने में सहायक होता है, किन्तु शारीरिक मता आती है, जिनके कारण ढलती हुई आयु में भी, बल अथवा 'उपक्रमकारिता' (Intuition) की वृद्धि अर्थात शरीर में स्थूलता आ जाने पर भी खिलाड़ी में इन दोनों में से किसी के किये कुछ नहीं हो अपन खेल-प्रसाद-विहीन समवयस्कों की अपेक्षा सकता। पुस्तकों अथवा अध्यापकों के द्वारा प्रस्तुत अधिक क्रियाशील और चुस्त रहता है । अपने पहलकिये हुए मानसिक भोजन को पचाने के लिए, वानों को ही लीजिए । गामा की तोंद को देखिए ममझ कर ग्रहण करने के लिए, बालकों के अपरिपक्क और फिर उसकी बिजली जैसी झड़प की कल्पना मस्तिष्क को बहुत ही कष्टप्रद प्रयत्न करना पड़ता कीजिए, जिससे जिवेस्को जैसा विश्वविख्यात है। परन्तु वेलों में बालक जो कुछ औरों को करते सुभट बात की बात में चित हो गया। क्या ही हुए देखता है, जल्दी ग्रहण कर लेता है और अच्छी बात हो यदि हमारे पहलवान कुश्ती के अनुकरण करने का उद्योग करता है। अत: शारीरिक अतिरिक्त अन्य खेलों अथवा कसरतों से भी शौक ओज के साथ ही साथ मानसिक स्फूर्ति की अभिवृद्धि करें। शायद उनकी बड़ी बड़ी तोंदों का परिमाण एवं निर्माण-शक्तियों को उत्तेजित करने के लिए तब कम हो जाय । काम-काजी किसानों, असभ्य कहे खेल ही सर्वोत्तम माधन हैं। खेलों-द्वारा ही क्रिया- जानेवाले परन्तु नैसर्गिक विधि से जीवन-यापन शील मनुष्य उत्पन्न हो सकते हैं। जिस प्रकार खेल करनेवाले भील-सन्थालों, सदा खेलते-कूदते रहनेसिखाये और खेले जाने चाहिए यदि वैसे ही खेल वाले बच्चों (माता-पिता के अत्यधिक लाड़ के पुतले, सिखाये और खेले जायें तो विश्वास मानिए कि रुई के फाये में लिपटे हुए अभागे बच्चों का जिक्र खेलों की सहायता से ही सुयोग्य एवं सत्पात्र नहीं है) में बिरला ही दीर्घोदर मिलेगा। बम्बई से भारतीयों की संख्या बढ़ेगी। प्रकाशित 'रामपंचायतनम' वाले चित्र को देखकर __ खुली हुई हवा में कसरत करने से स्वास्थ्य पर मन में कैसे भाव उत्पन्न होते हैं, क्या कहूँ। प्रचण्ड लाभदायक प्रभाव पड़ता है, व्यायाम से शरीर का शिव-कोदण्ड का भंग करनेवाले, महापराक्रमी गठन होता है और इस प्रकार रोगादि के प्रतिरोध परशुराम के दर्प का हरण करनेवाले, चौदह वर्ष की क्षमता आती है। भारत के सवश्रेष्ठ कवि वनवास करनेवाले, रावण-जैसे उत्कट दानव के वध कालिदास ने भी कहा है-शरीरमाद्यं खलु धम- को क्षमता रखनेवाले मर्यादापुरुषोत्तम भगवान के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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