Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 588
________________ खेलों का महत्त्व लेखक, श्रीयुत वंशीधर सिंह यों तो सदैव ही जनता का स्वास्थ्य राष्ट्र का सबसे बड़ा बल माना गया है पर श्राधुनिक युग तो मानों खेलों काही युग है। संसार के प्रायः सभी देशों के खिलाड़ी संगठित रूप से इस मैदान में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से संसार-यात्रा के लिए निकलते हैं और अपनी शक्ति की परीक्षा करते हैं । यह प्रसन्नता की बात है कि इस सम्बन्ध में भारत भी नये दृष्टिकोण से विचार करने लगा है और उसने कुछ करके दिखाया भी है। इस नवीन दृष्टिकोण के प्रचार और प्रसार के उद्देश्य से ही लेखक ने यह विचारपूर्ण लेख लिखा है । 1 किसी 'राष्ट्र की अवनति होती है, दुर्भाग्य से उसकी संस्कृति का लोप होने लगता है। अनेक महत्त्वपूर्ण कलायें एवं व्यवसाय उपेक्षा की दृष्टि से देखे जाने लगते हैं और जिन कार्यों में उसके पूर्वज गर्व - पूर्ण तत्परता से भाग लेते थे उनके सम्पर्क से उसे संकोच होता है । उदाहरण के लिए केवल संगीत और व्यायाम को ही लीजिए। प्राचीनों ने संगीत को आराधना का महत्त्वपूर्ण अंग और दलित कलाओं में से एक माना है। श्री नारद भगवद्भक्तों में अग्रगण्य माने जाते हैं। पर अब बंगाल के अतिरिक्त उत्तर भारत में इस विद्या की यह दुर्दशा हो गई है कि वेश्याओं और निम्न कोटि के लोगों को छोड़कर किसी भी वर्ण अथवा समाज में संगीत-कला का प्रचार नहीं है । रुचि भी इतनी दूषित हो गई है कि सिवा ग़जलों जैसे निम्न कोटि के गानों के और किसी चीज़ की क़द्र ही नहीं है । ठीक यही हाल खेलों का भी है। भगवान रामचन्द्र एवं श्री कृष्णचन्द्र का खेलों में भाग लेना सब जानते हैं और जानते हैं कि बिना खेलों में शरीक हुए, बिना शारीरिक शिक्षा-लाभ किये, हमारे पूर्वज इतने भारी योद्धा नहीं हो सकते थे । फिर भी कसरत करना, कुश्ती लड़ना, खेल खेलना आदि आज अधिकांश जनता को सुरुचिपूर्ण नहीं प्रतीत होते । ये काम तो नटों जैसे नीचो श्रेणी की जातियों और ५३६ ज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat अबोध बालकों के समझे जाने लगे हैं। यह प्रसन्नता की बात है कि अब कुछ कुछ रुचि परिवर्तन हो रहा है और लोग खेलों से थोड़ी-बहुत दिलचस्पी लेने लगे हैं । भारतीय टेनिस टीम 'डेविस कप' में सम्मिलित होने लगी हैं। कुश्ती का कौशल दिखलाने के लिए हमारे पहलवान विदेश जाते हैं और जो विदेशी पहलवान यहाँ कुश्ती लड़ने आते हैं वे अपना गर्व खोकर ही वापस जाते हैं । हमारी हाकीटोम संसार विजयी सिद्ध हुई है । हम अब इंग्लेंड से क्रीकेट के टेस्ट मैच खेलने लगे हैं । हमारी फुटबाल टीम अफ्रीका हो आई है । घोष और रोविन चटर्जी जैसे नवयुवक तैराकी में संसार के लिए आदर्श उपस्थित कर चुके हैं । परन्तु इस ओर हमारी यह प्रगति अभी बहुत धीरे धीरे हो रही है । इस विशाल देश के लिए यह सब कुछ समुद्र में एक बूँद के बराबर है। पढ़ाई का परीक्षा फल जानने को तो सभी माता-पिता उत्सुक रहते हैं, किन्तु बालक ने शारीरिक उन्नति कितनी की है, इसकी किसी को चिन्ता नहीं । मेरे तुच्छ विचार में यह उदासीनता प्राणघातक है । निर्बल, अल्पायु, अकर्मण्य युवकों की संख्या वृद्धि का कारण अधिकांश में यही हमारी उदासीनता है । पाश्चात्यों की जीवनचर्या में खेल, व्यायाम अथवा शिकार का लगभग वही स्थान है जो उनके जीविका सम्बन्धी व्यवसाय का । बड़े से बड़ा राज - नीतिज्ञ, साहित्यिक, वैज्ञानिक प्रतिदिन अनिवार्य रूप से व्यायाम के लिए समय निकालता है और www.umaragyanbhandar.com

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