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संख्या ६)
फारसी में भागवत
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नहीं लिखा हुआ है, किन्तु लेख से स्पष्ट है कि आदि बहादुर थे। उनके छोटे भाई हरचरनदास जी थे। उन्होंने व अन्त के १६६ पृष्ठ एक व्यक्ति के लिखे हुए हैं और इस प्रति को चतुर्दशी संवत् १८५५ विक्रम अर्थात् १२ मध्य के १०० पृष्ठ किसी दूसरे के लिखे हुए हैं । पर दोनों जमादी-उल-ौवल सन् १२१३ हिजरी (सन् १७६८ ईसवी) लेखकों की लिखावट सुन्दर है।
को समाप्त किया था। मेरा खयाल है कि यह प्रति अभी कहीं नहीं छपी है। उक्त हस्तलिखित प्रति के विषय में अब यह कहना पर एक और प्रति मेरे पास अवश्य ऐसी है जिसका पाठ अनुचित न होगा कि यह प्रति वास्तव में किसी हिन्दू उक्त प्रति से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। यह प्रति सजन की रचना प्रतीत होती है। किसी अन्य व्यक्ति के हाथ की लिखी हुई है। बड़े आकार में है। इसमें दशम स्कन्ध भी पूर्ण नहीं अर्थात् प्रति यह 'श्रीमद्भागवत' के नाम से सन् १८७० ईसवी में अधूरी है, जिससे लेखक का नाम तथा लिखे जाने का गुजरानवाला (पंजाब) के 'ज्ञान-प्रेस' का छपा हुआ एक समय भी नहीं मालूम हो सकता, परन्तु काग़ज़ व और संस्करण है । यह छोटे आकार के केवल ११६ पृष्ठों लिखाई श्रादि से स्पष्ट है कि यह प्रति कम-से-कम सौ का है और गद्य में है। इसके कर्ता कौन सजन थे, उन्होंने वर्ष पूर्व अवश्य लिखी गई थी।
इसे कब लिखा था, इन बातों का कछ पता न लग सका। यह हस्तलिखित प्रति फारसी गद्य में मेरे पास है। अन्त में यह कहना अनुचित न होगा कि इन फ़ारसी भागवत का सार है। बड़े आकार के ३८४ पृष्ठों में समाप्त ग्रन्थों से चाहे कोई लाभ हो या न हो, किन्तु इनकी तुलना है। इसके रचयिता अथवा रचे जाने के समय की बाबत करने पर यह अवश्य जाना जा सकता है कि ग्रन्थ के कुछ पता नहीं चला। अन्त में जो कुछ है उससे पता विवादास्पद विषयों को इन लोगों ने अथवा इनके समय चलता है कि बनारस में ही कोई सज्जन राय सुखलाल के लोगों ने क्या समझा था ।
उद्गार लेखक, श्रीयुत कुञ्जविहारी चौवे
जीवन पाकर भी कर न सका, जी-वन की यह दावाग्नि शान्त । वसुधा में आकर सुधा छोड़,
विष-पान किया बन निपट भ्रान्त । जग निद्रा में था जागरूक, मैं जग कर भी कब सजग रहा ?
विधि की गति-विधि के हो अधीन, मैं बना रहा हतमति नितांत !!
क्रन्दन ही मेरा हृदय-गान, शोकाश्रु-विन्दु शुचि रत्न-हार । करुणा ही मन का केलि-कुञ्ज,
पीड़ा मेरा सर्वस्व-सार। संताप शुद्ध तप है मेरा, असफलता मेरी सफल सिद्धि;
चुन हारों के ही शुष्क फूल, Dथा मैंने निज विजय-हार !!
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