Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

View full book text
Previous | Next

Page 590
________________ ५३८ सरस्वती [भाग ३६ सेठ जी की सी तोंद ! चित्रकार एवं प्रकाशक की हैं और मनुष्य को शान्तिप्रिय व्यवसाय के योग्य बनाने बलिहारी ! "वृषभकंध केहरि ठवनि” तथा “केहरि- के साथ ही साथ इस योग्य भी बनाते हैं कि अवसर कटि पट पीतधर" पर विचार कीजिए और तब पड़ने पर वह अपनी और देश की भी रक्षा कर सके। विचार कीजिए चौदह वर्ष वन-वास से आये हुए सब खेल अच्छे होते हैं, क्योंकि सबका परिणाम महाराज के चित्र पर ! राम, कृष्ण, महावीर, भीष्म, कल्याणकारी होता है। हर प्रकार के खेल का अर्जुन, अभिमन्यु, पृथ्वीराज, आल्हा-ऊदल, प्रताप, विशेष प्रकार का शिक्षाप्रद मूल्य है। खेल दो शिवाजी इत्यादि के कल्पित चित्रों में तोंद दिखलाना कोटियों में विभाजित किये जा सकते हैं--एकाकी अपने को हास्यास्पद करना है। पुरानी बातों को खेल तथा सामूहिक खेल । साधारणत: हम कह छोड़िए। मेजर नायडू, विजय मर्चेण्ट, अमरनाथ, सकते हैं कि एकाकी खेलों से व्यक्तित्व का विकास सलीम, छोटे बाब, ध्यानचन्द, रूपसिंह, मोहनबगान होता है और स्वातन्त्र्य का गुण प्रस्फुटित होता है, के पाल इत्यादि के सुदृढ़ सबल शरीर में आधी और सामूहिक खेल हममें सहकारिता के भाव का छटाँक फालतू गोश्त या चर्बी नहीं दिखाई देगी। आप संचार करते हैं। पूछेगे, शरीर कैसा होना चाहिए। उत्तर में यही कोई खेल क्यों न हो, वह खेल खेल न कहकहना पर्याप्त है कि अपने देश के प्रमुख खिलाड़ियों लायेगा यदि उसमें किसी प्रकार की आशंका न हो। को देखिए । देखिए उन छरहरे शरीरों को जिनकी अँगरेज़ी का एक पद्य है जिसका यह भाव है कि पेशियाँ ढीली अवस्था में रेशम-जैसी मृदुल एवं विवेकी जनों की क्रीड़ा के लिए वह खेल जिसमें सुखद तथा कड़ी होने पर फ़ौलाद जैसी कठोर होती दुर्घटनाओं की सम्भावना न हो, निकृष्ठ है। कुछ हैं, और फिर यह प्रश्न आप कभी न करेंगे। खेलों में उत्तेजनापूर्ण साहस अपेक्षित है । किस ___ हाँ, शरीर को तो खेलों से लाभ होता ही है, साहस एवं मनःस्थैर्य के साथ हमारे क्रिकेट के किन्तु केवल इतना ही नहीं। खेल हमारी मांस. महारथी मेजर नायडू, अमरनाथ, वजीरअली, पेशियों को सुदृढ़ करने और हममें साहस और विजय मर्चेण्ट (माथे पर पट्टी बाँधे हुए), दिलावरसहनशक्ति भरने के अतिरिक्त वे वह प्लवनशीलता, हुसेन (जो माथे पर गेंद लगने से संज्ञाहीन हो गये वह स्थायी प्रफुल्लता, वह अदम्य जिन्दादिली प्रदान थे) और नावमल (इनके सिर में भी चोट लगी करते हैं जो मरते दम तक हारने का नाम नहीं थी) इंग्लिश बोलरों की बन्दुक की गोली के समान लेती। एन्डू लैङ्ग नामक अँगरेज़ लेखक का क्रिकेट के वेग से आनेवाले गेंदों के सामने घंटों डटे रहे सम्बन्ध का एक कथन न्यनाधिक रूप से अन्य खेलों और रन करते रहे। गेंद की तेजी का यह हाल • भी लागू होता है। उनका वह कथन यह है- था कि थोड़ी-सी भी चूक का परिणाम होती"क्रिकेट स्वयं शिक्षा है और उसमें चित्त-स्वास्थ्य, कपालक्रिया। न्यायशीलता एवं अध्यवसाय अपेक्षित है। पाठ- किसी खेल में दक्षता प्राप्त करने के लिए नियमित शाला के कमरों की अपेक्षा क्रीड़ा-क्षेत्र पर अधिक आहार, निद्रा, बँधी हुई एवं स्वास्थ्यवर्धिनी जीवनशिक्षा मिलती है और इस शिक्षा से अधिक लाभ चर्या नितान्त आवश्यक है। बिना इसके सिद्धि उठाना चाहिए। क्योंकि बिना औत्सुक्य के---बिना मिल ही नहीं सकती। यशः-प्राप्ति के लिए अथवा भावुकता के–मनोरंजक क्रिकेट हो नहीं सकता और स्वान्तःसुखाय, नैपुण्य-लाभ सबको इष्ट है । खेलों ये गुण जीवन को अधिक समृद्ध बनाते हैं-संस्कृत के ही बहाने खिलाड़ो अपने को अच्छी शारीरिक करते हैं ।" खेल चरित्र-निर्माण में सहायक होते दशा में रखता है। यही क्या कम है ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630