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सरस्वती
१८५६ ईसवी) का प्रकाशित है। इस संस्करण से मुझे यह नहीं मालूम हो सका कि यह प्रेस कहाँ था । इस संस्करण की जो प्रति देखने में आई है उसके प्रथम दो पृष्ठ नष्ट थे । संभवतः इसी कारण यह पता नहीं चल सका कि यह प्रेस कहाँ था । हाँ, इसमें जो छोटी-सी भूमिका है उससे ऐसा जान पड़ता है कि यह प्रेस दिल्ली में रहा होगा । यह संस्करण बड़े आकार के १,१६६ पृष्ठों का है और सचित्र है । वास्तव में इसी संस्करण के आधार पर अन्तिम तीन स्कन्धों का नवलकिशोरी संस्करण सचित्र हुश्रा है
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प्रथम प्रति के रचयिता ने अपने ग्रन्थ को मधुर बनाने के लिए बीच बीच में आवश्यकतानुसार ग़ज़लें व रूबाइयाँ भी लिखी हैं । इसके सर्वप्रिय होने पर लाला साहब ने संवत् १८१२ विक्रम (सन १७५४ ईसवी) में रामायण को भी फ़ारसी पद्य में लिखा था जो मुंशी नवलकिशोर के प्रेस से सन् १८७२ ईसवी में प्रकाशित हो चुका है । ( २ )
'चन्द्रमुन' अथवा 'चन्द्रमणि' नाम के कोई पण्डित हुए हैं। उन्होंने सन् १९०६ हिजरी (सन् १६६५ ईसवी) में फ़ारसी में श्रीमद्भागवत को रचा था। यह प्रति छोटे आकार के ४६० पृष्ठों में है । सन् १८६१ ईसवी की हस्तलिखित प्रति बनारस के 'कार मैकल पुस्तकालय' में है । अति सुन्दर अक्षरों में है। माना नवीन ही लिखी गई है।
इसके लिखनेवाले सज्जन का नाम इस पर नहीं । यह प्रति मूल लेखक की ही प्रति से नक़ल की गई है। इसका नाम एक स्थान पर ' नर्गिस्तान' व दूसरे स्थान पर 'संबुलिस्तान' लिखा हुआ है 1
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'श्रीमद्भागवत' के नाम से एक तीसरी पुस्तक जो केवल दशम स्कन्ध का पद्यानुवाद है, मिली है। पूर्वार्द्ध व उत्तरार्द्ध दोनों में कुल १४,३५० शेर (पद्य) हैं।
* यह प्रति तथा नवलकिशोरी संस्करण की सम्पूर्ण प्रति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पुस्तकालय में श्रीराम सेकशन में है - P. 9. 9., 1, 2, 3.
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| भाग ३६
यह अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति हिन्दू- हाई-स्कूल, बनारस, के पुस्तकालय (म्युज़ियम विभाग) में है । इसका आकार मँझोला है । कुल पृष्ठ एक हज़ार के लगभग हैं। यह प्रति पुराने ढंग के मोटे काग़ज़ पर साधारण लिपि में है । किसी व्यक्ति तथा वस्तु के नाम व कुछ विशेष शब्द लाल रोशनाई से लिखे गये हैं अन्यथा सारा ग्रन्थ काली रोशनाई से ही लिखा गया है ।
ग्रन्थकार का नाम मक्खनलाल उपनाम 'तमन्ना' और पिता का नाम नित्यानन्द जाति माथुर कायस्थ लिखी हुई है । ग्रन्थ में रचे जाने का समय सन् १२३१ हिजरी (सन् १८१६ ईसवी) है । ग्रन्थ में लखनऊ के नवाब ग़ाजीउद्दीन हैदर के निमित्त प्रशंसात्मक पद्य हैं। उनसे ऐसा अनुमान होता है कि स्वयं लेखक महाशय अथवा उनके घरानेवाले नवाब के यहाँ अवश्य नौकर थे ।
ग्रन्थ के पूर्वार्द्ध भाग के लिखे जाने का समय १४ रजब सन् १२६७ हिजरी (सन् १८५१ ईसवी) अर्थात् पूर्णमासी पूस संवत् १६०६ विक्रम है । इसके पश्चात् ही उत्तरार्द्ध लिखा गया है । इसको जिसने लिखा अर्थात् नक़ल किया है उसका पता ग्रन्थ से कुछ नहीं चलता । ( ४ )
'श्री भागवत महापुराण' नाम की एक हस्तलिखित प्रति ( गद्य में) मेरे पास है। प्रति बड़े आकार के ३५२ पृष्ठों में थी, किन्तु इसके आदि के ६ पृष्ठ और २ पृष्ठ बीच के खण्डित हैं । नहीं तो इसमें सम्पूर्ण १२ स्कन्ध थे ।
यह किसका भाषान्तर किया हुआ है, यह कब भाषातर किया गया, कहाँ किया गया, इन बातों का पता अभी तक मुझे नहीं मालूम हो सका । हाँ, इस प्रति के लिखे जाने का समय श्रावण बदी एकादशी शनिवार संवत् १८५८ या १८५६ विक्रम है । लेखक का नाम
* दिन और तिथि यादि जो अन्त में लिखे हुए हैं उनमें से संवत् का एकाई अंक स्पष्ट रूप से नहीं पढ़ा
जाता ।
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