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सरस्वती
सचित्र मासिक पत्रिका
दिसम्बर १९३५ }
सम्पादक
देवीदत्त शुक्ल श्रीनाथसिंह
भाग ३६, खंड २ संख्या ६, पूर्ण संख्या ४३२
लेखक, श्रीयुत सुमित्रानन्दन पन्त
तारों का नभ ! तारों का नभ ! सुन्दर, समृद्ध, आदर्श सृष्टि ! जग के अनादि पथ-दर्शक वे,
मानव पर उनकी लगी दृष्टि ! वे देव-बाल भू को घेरे,
भव भव की कर रहे पुष्टि ! सेबों की कलियों-सा प्रभूत वह भावी जग-जीवन-विकास !
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{ मार्गशीर्ष १६६२
मानव का विश्व - मिलन पवित्र, चेतन आत्माओं का प्रकाश !
तारों का नभ ! तारों का नभ ! अंकित अपूर्व आदर्श सृष्टि ! शाश्वत शोभा का खिला दन,
होने को है पुष्प वृष्टि ! चाँदनी चेतना की अमन्द, ग-जग को छू दे रही तुष्टि !
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