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संख्या ६]
शब्द
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कारण है कि हम बहुत दूर का शब्द नहीं सुन शब्द की महिमा अपार है। यह अतिवाक्य है-- सकते ।" जिन्हें पुस्तकें 'हड़प' कर जाने का शौक़ "शब्दो नित्यः”। इसी कारण इसका स्थान विषयहोता है उन्हें ऊपर के वाक्य क्या समझ में आवेंगे? वर्ग की सूची में प्रथम है; इसी पर सब कुछ निर्भर दूसरे ये उस भाषा में लिखे हैं जिसका लिखना या है। यह कहा जाता है, और रोज़ का अनुभव भी है बोलना ग्रामीणता की पहचान समझी जाती है। कि संगीत का प्रबल प्रभाव केवल मनुष्यों पर ही कहाँ तक हम अपनी प्रशंसा करें . हम अपनी भाषा क्या, समस्त जीवधारियों पर पड़ता है। यदि कान अब भूल गये हैं। हा ! “धिक है जो उसी के विरोधी ही नहीं हैं तो उन मधुर शब्दों से कैसे आनन्द बने जिसने इस योग्य बनाया तुम्हें ।"
आवेगा? शब्द-विषय की अधिकता मृग में इतनी नैयायिकों का कहना है कि 'मृदङ्गादि वा कण्ठ- ज्यादा होती है कि उसी के द्वारा वह नाश को प्राप्त तालु आदि में अभिघात लगने से वहाँ के नभः- होता है। यह कहा जाता था-यद्यपि अब एक प्रदेश में उत्पन्न शब्द वीचितरङ्गन्याय से अर्थात् निमूल कपोलकल्पित कहानी मालूम होती है जब जिस प्रकार किसी स्थान के जल में वायु द्वारा एक कि वीणा की जगह बेसुरा पाइप बज रहा है कि तरङ्ग उत्पन्न होने से क्रमशः उसी के घात-प्रतिघात- मग वीणा का शब्द सनकर इतना मग्ध और स्तब्ध द्वारा बहुत दूर तक तरङ्ग बढ़ती जाती है, मृदङ्गादि हो जाता था कि वह जिन्दा पकड़ लिया जाता था। में प्रथम, द्वितीय, तृतीय इत्यादि आघातजन्य सूरदास जी ने यह दिखलाया है कि केवल मृग ही उत्पन्न शब्द भी वायु-द्वारा क्रमशः उत्तरोत्तर उक्त पर नहीं, बरन और जीव-जन्तुओं पर भी शब्द का प्रकार के तरङ्गाकार में श्रवणेन्द्रिय-पयेन्त पहुँचकर प्रबल प्रभाव पड़ता है। आपने तानसेन की प्रशंसा उसमें प्रतिहत होने से वहाँ उसका विकास होता है।' में कहा है---
यह भी किसी किसी का मत है कि "कदम्ब- विधना यह जिय जानि के दियो शेष नहिं कान । गोलकन्याय से अर्थात् मृदङ्गादि में प्रथम, द्वितीय धरा मेरु सब डोलि है सने तान की तान ॥' आदि आघातजन्य क्रमशः उत्पन्न शब्दों की उस जिस तरह संसार में भूकम्पों का जोर है, उससे प्रथम उत्पत्तिस्थान को ही कदम्ब-पुष्प की तरह तो यह मालूम होता है कि कान न होते हुए भी किसी गोलाकार वस्तु के केन्द्रस्वरूप तथा उसके केशरों बिहारी या क्वेटा के गवैये के मधुर शब्दों का प्रभाव की तरह उक्त केन्द्रोत्पन्न शब्द व उनकी गति व्यासार्द्ध शेप जी पर इतना पड़ा है कि वे उसकी प्रशंसा में स्वरूप चारों ओर विक्षिप्त होती है, इस विक्षेपकाल खूब सिर हिला रहे हैं। में जहाँ जहाँ उस शब्द या उसकी गति के साथ वेदान्त या सांख्य की दृष्टि से तो नहीं, लेकिन श्रोत्रसंयोग होता है उन्हीं सब स्थानों में उनका अंगरेजों ने प्राण्योपधिजीवनशास्त्र की दृष्टि से इस विकास दिखाई देता है।"
ओर अच्छी खोज की है। हमारे देश में जो खोज महाभारत के अश्वमेधपर्व में शब्द को कई की गई थी वह लुप्त हो गई है। इंसायक्लोपीडिया भागों में विभक्त किया है-'षड्ज, ऋषभ, गान्धार, ब्रिटानिका में शब्द की अच्छी व्याख्या की गई है। मध्यम, पञ्चम, निषाद, धैवत'। इष्ट और संहत के भेद यह कहा गया है कि शब्द एक तरह के यांत्रिक कम्प से शब्द दस भागों में विभक्त किया गया है। संस्कृत हैं, जिन्हें चाहे हम सुन सकें या न सुन सकें। इस पर में विशेष विशेष शब्द का विशेष विशेष नाम है । सूची लोगों ने प्रायः ध्यान दिया होगा कि पदार्थों में शब्द बहुत लम्बी है और इस स्थान के लिए कुछ असङ्गत- उत्पन्न होने के समय एक प्रकार का कम्प पैदा हो सी प्रतीत होती है, इस कारण वह छोड़ दी जाती है। जाता है जो अँगुली रखने से जाना जा सकता है।
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