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संख्या ६ ]
शब्द
पेशियों में घनिष्ठ सम्बन्ध है । यह बहुत लोगों का मत है कि ताल कार्य प्रवर्तक है । एक लेखक का कहना है कि सस्वरता यह कहते हुए जान पड़ती है कि वाणी नाच रही है, एक अच्छा भाव अच्छी तरह प्रकट किया गया । अरिस्टाटिल ने सबसे पहले यह कहा था कि ताल और सस्वर गति या वेग हैं, और इस कारण मनोवृत्ति के चिह्न हैं । इर्गो ग्राफ़-यंत्र द्वारा यह पता लगाया गया है कि सोल्लास संगीत चेतनावान् पुरुषों की थकावट मिटा देता है, और बाज़ को मध्यम स्वर का संगीत अरुचिकर होता है । आधुनिक समय में यह खोज करके पता लगाया गया है कि मांसपेशियों को छोड़कर हृदय और श्वास पर भी संगीत का अच्छा प्रभाव पड़ता है । संगीत के प्रभाव से रक्त भी शरीर में शीघ्रगामी हो जाता है, और मस्तिष्क अधिक काम करने लगता है। एक नवयुवक के सिर में गहरी चोट लगने से सिर की हड्डी का एक भाग टूट कर गिर पड़ा था। उस समय देखा गया कि संगीत के प्रभाव से पहले की तरह मस्तिष्क में रुधिर संचालित हो गया। एक दूसरे का कहना है कि यह भी देखा गया है कि संगीत के प्रभाव से मूत्राशय में सिकुड़न पैदा हो जाती है । जर्मनी में यह खोज से पता लगाया गया है कि यदि संगीत ध्यान पूर्वक सुना जाय तो नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है और यदि विशेष ध्यान न दिया जाय तो उसकी गति मंद हो जाती है। इसका भी पता लगाया गया है कि सुखमय उत्तेजना नाड़ी की गति को मंद कर देती है और सुखकर चेतना उसे तीव्र कर देतो
रुधिर के परिभ्रमण पर संगीत का प्रभाव पड़ता है और इसी कारण त्वचा पर भी प्रभाव पड़ता है । किसी किसी को अच्छा संगीत सुनने से बहुत पसीना निकलने लगता है । संगीत का प्रभाव गुर्दों पर भी पड़ता है, क्योंकि कोई कोई बहुमूत्र के वेग से कुलित हो जाते हैं। बाजों में
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संगीत सुनने के समय दृष्टि की तीव्रता बढ़ जाती है ।
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जानवरों पर भी संगीत का बड़ा प्रभाव पड़ता है। कुत्तों में चेतनता इतनी बढ़ जाती है कि २० प्रतिशत अधिक आक्सीजन का वे उपभोग करते हैं और १७ प्रतिशत कार्बोनिक एसिड का परित्याग करते हैं। शेर सारंगी को बहुत पसन्द करता है सारंगी और वीणा बहुत-से जानवरों को पसन्द है अँगरेज़ी - लेखकों के भी मतानुसार वीणा का बड़ा प्रभाव मृग पर पड़ता है, और सर्प पर भी वैसा ही बड़ा प्रभाव पड़ता है। चिड़ियों, कीड़ों और पतिंगों का भी वही हाल है - संगीत से वे भी प्रभावित होते हैं। पतिंगों में मच्छड़ों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
चीन और ग्रीस देशवासियों का यह कहना था कि संगीत का चरित्र पर शुभ और अशुभ दोनों प्रभाव पड़ सकते हैं। लगभग ३,००० वर्ष पहले चीन के एक सम्राट् का विश्वास था कि वही अच्छा शासक हो सकता है जो अच्छी तरह संगीत समझता हो । उसके प्रतिकूल औरंगज़ेब को संगीत से चिढ़ थी। एक दफ़ा कुछ लोगों ने कृत्रिम र्थी बनाकर उसे उठाया और शोकनाद करते हुए महल के पास से निकले । बादशाह ने पूछा कि किसकी मृत्यु हो गई है। शोकनाद करनेवालों ने कहा कि संगीत की । स्मशान में बादशाह ने अपने प्रतिनिधिद्वारा कहला भेजा कि इतनी गहराई में दफ़न किया जाय कि फिर वह बाहर न आ सके ।
शुष्क हृदयवालों पर बेशक संगीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। संगीत का भी उस सूची में नाम है जिससे अनभिज्ञ पुरुषों की संज्ञा पशु है । एक देहाती मसल है- “भैंस के आगे बीन बजे और भैंस खड़ी पगुराय । "
फिर वही श्रुति-वाक्य स्मरण हो आता है— "शब्दो नित्यः । "
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