Book Title: Saraswati 1935 07
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 558
________________ ५१० सरस्वती [भाग ३६ और इसी वजह से विषयवर्ग की सूची में इसका को छू देता है और स्वभावतः वह ध्वनित हो जाती प्रथम स्थान है। घोड़े हिनहिना कर, कुत्ते गुर्रा कर है। यदि स्त्री चुप रही तो पुरुष समझ लेता है कि अपनी मादाओं को उत्तेजित करते हैं। कहा जाता उसका प्रस्ताव स्वीकृत हो गया है। है कि प्राचीन समय में मनुष्य भी इसके लिए अश्लील प्रभाव बहुत कुछ प्रथा पर निर्भर होता है। शब्दों का उच्चारण करते थे। एक और लेखक का आस्ट्रिया में किसान जब सवेरे अपने बैलों या घोड़ों कहना है कि इस प्रथा का लोप अभी तक नहीं हुआ को खेतों में काम करने के लिए ले जाने लगते है, और न शायद कभी होगा। ऐसे अवसरों पर हैं तब अपने चाबुकों को बजाते हैं। कहा जाता सभ्यता संकुचित होने लगती है और मनुष्यों और है कि इस शब्द का बहुत बड़ा प्रभाव गाँव की जानवरों में केवल नाममात्र का फ़र्क रह जाता है। युवतियों पर पड़ता है, और वे पहचान लेती हैं एक लेखक का मत है कि ऐसे भाषित शब्द ही कि अमुक शब्द उनके प्रेमी के चाबुक का है। नहीं, बरन कोई सरीली ध्वनि भी आनन्ददायक होती गड़ियों के (नागपञ्चमी) अवसर पर यहाँ पतावर है और उसके मतानुसार कटिकिंकिणी पहनने का के कोड़े बनते हैं जिन्हें मनचले युवक या 'बुड्ढे अभिप्राय भी यही है। हमारे देश के कवियों का भी लड़के' घुमा घुमा कर बजाते हैं और उनका भी शायद यही विचार था। इस तरह की चीजों की अभिप्राय गाँव की युवतियों को प्रसन्न करने का सूची में उनके मतानुसार चूड़ियों और बिछुओं का होता है। भी स्थान है। एक कवि कहता है-'कटिकिंकिणी प्रभाव बहुत कुछ स्वर पर भी निर्भर होता है। नेक न मौन गहै चुप लैबो चुरीन से माँगती हैं।' मन्द स्वर में विश्वास होता है। एकान्त में भी प्रेमी मतिराम जी कहते हैं अपनी प्रेमिका से अपने तप्त हृदय का उद्गार मन्द "गौने को द्योस सिंगारन को, स्वर में ही कहता है । जैसे, 'चुराये हुए चुम्बन मीटे 'मतिराम' सहेलिन को गन आयो।। होते हैं। वैसे ही मन्द स्वर में कहे हुए शब्द अति कञ्चन के बिछुवा पहिरावत, मधुर होते हैं। अपवादवक्ता भी मन्द स्वर में ही ___प्यारी सखी परिहास जनायो। बातें करते हैं। उनका यह खयाल होता है और पीतम स्रौन समीप सदा, ठीक खयाल होता है कि इससे प्रभाव कम-से-कम ____ बजे यों कहके पहले पहिरायो। द्विगुणित हो ही जायगा। अपने यहाँ की एक कहाकामिनी कौल चलावन को, वत है, "क्या कनफुसकी करते हो।" इसका प्रयोग ___ कर ऊँचो कियो पै चल्यो न चलायो॥" उन अवसरों पर किया जाता है जब यह सूचित करने 'नूपुर की झनकार एक' प्रचलित कहावत है। का अभिप्राय होता है कि क्या प्रपञ्च कर रहे हो। ये सब आभूषण कामदेव के बड़े सहायक हैं। जितने भर शब्द कान में आते हैं उन सबमें रामायण में तुलसीदास जी ने कहा है- संगीत का प्रथम स्थान है। केवल यही नहीं कि "कंकणकिकिणि नूपुर धुनि सुनि । मस्तिष्क आनन्दित हो जाता है, बरन उसका बहुत कहत लपण सन राम हृदय गुनि ।। बड़ा प्रभाव मांसपेशियों पर पड़ता है जो स्वास्थ्य मानहुँ मदन दुन्दुभी दीन्हीं। के लिए अत्यन्त हितकर हैं। एक अँगरेजी लेखर मनसा विश्वविजय कह कीन्हीं ॥" 'विल्कस' का कहना है कि संगीत की उत्पत्ति मांस कहीं कहीं यह प्रथा है कि जो पुरुष किसी स्त्री से पेशियों के कार्य के साथ हुई है। यह और भी प्रेम प्रकट किया चाहता है वह उसकी कटिकिंकिणी लेखकों का मत है कि संगीत की ताल और मांस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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