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सरस्वती
[(भाग ३६
(२ )
कोई-न-कोई व्यवस्था करूँगा, जिससे चेर तथा पाण्ड्य-राज्य के राजाओं राजा की किशोरावस्था व्यतीत हो चुकी थी। यौवन के प्रबल की लोलुप दृष्टि चोल-राज्य पर न पड़े।" उत्साह और पराक्रम से उसका शरीर और मन परिपूर्ण था। उसने राजराजा यह बात जानते थे कि कहलनिरत चेर तथा पाण्ड्य-राज सेनापति अविरम्यण को बुलवा भेजा। सेनापति की अवस्था उस समय पाँच वर्ष ही नहीं, बल्कि उससे भी अधिक समय तक पारस्परिक युद्ध पचास वर्ष से अधिक हो चुकी थी। किन्तु वाक्य की मलिन छाया में ही संलग्न रहेंगे। तथा अवसाद उनके शरीर में नहीं था। उनका लम्बा शरीर स्वस्थ, सुटौल और सुन्दर था।
राजा के आह्वान से देश के लिए युद्ध करने को हज़ारों युवकों का म्यान से तलवार निकाल कर सेनापति ने तरुण महाराज का दल आया और सेना में सम्मिलित हुआ। उन युवकों के ललाट में अभिवादन किया और कहा-महाराज का क्या आदेश है ? दीप्ति थी, मुख में हास्य था और बाहुओं में बल । उन सभी का हृदय
दारुण निदाघ के प्रथम प्रभात में जिस समय उषा की सुनहरी उत्साह से पूर्ण था । अविरम्यण उन्हें युद्ध कला की शिक्षा आभा की आड़ में सूर्य प्रकाशित होते हैं तब उसकी रश्मियों के देने लगा। पीछे जिस प्रकार के दीप्त ताप की प्रखरता का आभास रहता है, इतिहास के सभी पाठकों को यह बात मालूम है कि प्राचीन काल उसी प्रकार अभिज्ञ सेनापति ने देखा कि अवस्था तरुण होने पर भी में भिन्न भिन्न देशों के सभ्य भारतवासियों के साथ व्यापार हुआ यह युवक राजा होने के योग्य है । अविरम्यण ने अनिमेष दृष्टि से उस
करता था। आयों ने भिन्न भिन्न देशों में जितने राज्य स्थापित किये दीप्त मुखच्छवि की ओर ताकते हुए प्रसन्न मन से कहा-आज्ञा
थे उन सभी देशों में व्यापार के निमित्त वे आया-जाया करते थे। दीजिए।
एक देश की वस्तुएँ अन्य देशों में ले जाकर वे विक्रय किया राजराजा ने कहा- मेरे शरीर का एक बिन्दु भी रक्त जब तक करते थे। धमनियों में प्रवाहित होता रहेगा तब तक मैं चेर, चालुक्य तथा एक वह भी दिन था जब इन चेर, चोल और पाण्ड्य राजाओं पाण्ड्य राजाओं की अधीनता कदापि नहीं स्वीकार करूँगा।
गा।
के जहाज़ समुद्र का अतिक्रमण करके भिन्न-भिन्न देशों में व्यापार के उत्साह से सेनापति का मुख प्रदीप्त हो उठा। उसने खुली लिए जाया करते थे। उस युग में वर्तमान मदरास के समीप एक तलवार म्यान में बन्द कर ली और घुटना टेककर कहा-महाराज, ऐसी राज्य था। उस देश की राजकुमारी पाण्डुवा ने विवाह के समय ही बात आपके मुख से शोभा देती है।
पिता से तीन सौ पैंसठ ग्राम दहेज़ के रूप में प्राप्त किये थे। प्रति“सेनापति, में युद्ध करूँगा। किन्तु मेरी सेना कहाँ है ? सेना के दिन एक-एक गांव के लोग अपने अपने गाँव का राजस्व लाकर राजकप्तान कहाँ है ? युद्ध के योग्य रणपोत कहाँ है ? राजकोष में अर्थ कुमारी को दिया करते थे। इस राजकुमारी के कई व्यापारिक जहाज़ भी नहीं रह गया है। यदि चेर और पाण्ड्य देश के राजाओं ने एक थे। वे सब जहाज़ मोती लादकर यूनान और रोम जाया करते थे। साथ हमारे राज्य पर आक्रमण किया तो चोल-राज्य का एक भी उस समय भारतवासी इसी प्रकार समुद्र पार करके व्यापार किया आदमी जीवित न रहेगा । इसका कोई प्रतीकार कीजिए।" करते थे। इस सिलसिले में चोल, चेर और पाण्ड्य राजाओं की
सनापति ने कहा-महाराज, सम्राट् परान्तक जब तक जीवित सामुद्रिक चढ़ाइयों के सम्बन्ध में भारत में खब प्रसिद्धि थी। थे तब तक तो किसी वस्तु का अभाव था नहीं । स्वगीय महाराज की जहाज़-निर्माण का काय्य बहुत ही शीघ्रतापूर्वक किया गया। मृत्यु के बाद ही इस राज्य की यह दुर्दशा हुई है। किन्तु मुझे यदि सैकड़ों जहाज़ तैयार करके जल में छोड़ दिये गये। सारे जहाज़ तैयार समय मिला, अधिक नहीं केवल पाँच वर्ष का भी समय मिल गया, हो जाने पर राजराजा उन्हें देखने गया। समुद्र के तट पर खड़े होकर तो मैं धन एकत्र कर लूँगा, साथ ही युद्ध के लिए उपयुक्त रणपोत उसने देखा—यह असीम अनन्त नीलसागर अनन्त आकाश की गोद में तथा सेना भी प्रस्तुत कर लूंगा।
क्षितिज्ञ में जाकर मिल गया है। इसकी हर एक तरङ्ग से कैसा __"क्या आप ऐसा कर सकेंगे ?"
गर्जन हो रहा है ! उसके मन में याद आई उस दिन की बात जब "हाँ महाराज, अवश्य कर सकूँगा। अपने देश के गौरव से कौन उसके पूर्वज फेनिल नील अनन्त सागर के हिंडोले पर भूलते झूलते नहीं गौरवान्वित होता? कौन नहीं चाहता कि अपने देश की मान- व्यापार के निमित्त अपनी वस्तुएँ देश-विदेश को भेजा करते थे। रक्षा करूँ ? आपकी कृपा से मातृभूमि की गौरव-रक्षा के लिए अवश्य वही समुद्र है, वही चोल-राज्य है, वही चोल-निवासी हैं, वही गिरि, समुचित प्रयत्न कर सकूँगा।"
नदी, बन आदि सभी कुछ हैं ! तब कौन-सी ऐसी बात है जिसके ___ “आपका कल्याण हो। मैं जिस तरह भी हो सकेगा, धन-संग्रह कारण उस युग में जो सम्भव था वह आज क्यों न सम्भव होगा? कर दूँगा। आप सेना का संगठन प्रारम्भ कर दीजिए। मैं ऐसी भी वही साहस, वही पराक्रम क्या आज न लौट सकेगा?
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