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एक ऐतिहासिक कहानी
प्राणदण्ड
लेखक, श्रीयुत योगेन्द्रनाथ गुप्त
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हाहाकार करती रहती, किसी के घर में भोजन को सामग्री नहीं ज़ार वर्ष से भी पहले की बात है। उस समय राजराजा दक्षिण- रहती थी। जिस मार्ग से होकर सेनायें निकलती उसके आस-पास
भारत के चोलों के राजा थे । छोटा-सा देश था, छोटा ही की खेती नष्ट हो जाती, गृहस्थों के मकान तक न रहने पाते। सैनिक
राज्य था। त्रिचनापली और तऔर को मिलाकर ही उस गण घरों को लूटकर प्रायः आग लगा दिया करते, और देखते ही समय चोलों का राज्य था। उस समय देश में शान्ति
देखते वे स्वाहा हो जाते। केवल उनकी जली हुई दीवारें । नहीं थी। छोटे छोटे राजा परस्पर कलह करके रक्त की
हृदय में ध्वंस की स्मृति लिये खड़ी रह जाती थीं। नदी बहा देते थे। पांड्य और चेर नामक दो छोटे
राजराजा जिस समय सिंहासन पर बैठे थे, वे । छोटे देश और थे। इन दोनों ही देशों के राजाओं
किशोरावस्था को पार नहीं कर पाये थे। उनके बड़े भाई । का आपस में बराबर युद्ध होता रहता था । प्रजा
देश के लिए युद्ध करते-करते एक-एक करके अपने प्राण ।
कुण्ठवि स्वरलहरी का अनुसरण करती हुई वहाँ पहुँची और
देखकर विस्मित हुई।
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