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संख्या ६ ]
छोटे बड़े काग़ज़ों पर कुछ संस्कृत वाक्य लिख दिये,
जो भविष्य में आनेवाले
भारतीय को ज़रूर दिखाये
जायेंगे।
ठीक तीन बजे बिदा
हुए। पहले सवा तीन घंटे मैं पूरी की गई यात्रा
लौटते वक्त, सवा दो ही घंटे में तब की मोटर के
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लिए पौन घंटे इन्तज़ार करना पड़ा। शाम को चिराग़ जलने से पूर्व ही होटल में आ दाखिल हुए। तप्तकुंड में विधिपूर्वक स्नान हुआ। आकर कमरे में बैठने पर एक जापानी भिक्षु मिलने आये । वे आज ही आये थे। श्री कुरिता ३ बजे लौट गये
कोरिया का वज्रपर्वत
थे, इसलिए आगे की यात्रा के बारे में बहुत-कुछ जानना था। भिक्षु गो-तो थोड़ी अँगरेज़ी भी बोल लेते हैं। इसलिए जब उन्होंने प्रस्ताव किया कि "यदि एक दिन और अधिक दें तो हमारे साथ परसों चो-अन्-जी मठ में पहुँच सकते हैं। हाँ, रास्ता (४० (किलोमीटर) प्रायः खारा पैदल का है"। हमने तुरन्त स्वीकार किया, और सात बजे उनके साथ प्रस्थान करने का निश्चय कर सो गये ।
[कोड गोसान् संकेइजी मठ ]
मुसीबत शाम को भूल जाती है। हमारे आगे आगे एक हृष्ट-पुष्ट योरपियन व्यक्ति जा रहा था। नज़दीक से देखने पर मालूम हुआ, कि पुरुष-वेष में वह स्त्री है। बड़ी बेतकल्लुफ़ी से पीठ पर पंद्रह सेर का बोझा लादे जा रही थी। पूछने पर मालूम हुआ, हमारे आज के गन्तव्य स्थान से वह कल ही लौट चुकी है।
नौ बजे के करीब हम जात् पर पहुँचे । पन्द्रह मिनट की उतराई उतर कर सोडालेमेनेट, मिठाई चाकलेट की दूकान मिली। वहीं टैक्सी खड़ी थी, ४० येन् (1)) देकर ४ मील तक चलना तय हुआ। दस बजे इंजीनियर और हम मोटर से रवाना हुए। हमारे बाक़ी दो साथी भम्पान पर सवारी कर रहे थे। यहाँ का भम्यान बदरीनाथ से दूसरी ही तरह का है। दो बाँसों से एक बेंत की कुर्सी बँधी रहती है। आगे की ओर रस्सी से बँधा एक पावदान भी लटकता रहता है। दोनों बाँस ६-७ हाथ लम्बे होते हैं। हर एक सवारी पर तीन आदमी होते है एक बार दो आदमी उठाते हैं। सवारी कंधे पर नहीं उठाई जाती। आदमियों के कंधे से काँधासोती दो फंदे लटकते रहते हैं। फंदे के भीतर बाँस को डाल हथेली से भी बाँस को पकड़े वाहक चलते हैं। मोड़ के संकीर्ण होने पर सवारी को गिरने का डर होता है, इसलिए ऐसी जगह उतर जाना पड़ता है। एक आदमी को एक
पन्द्रह तारीख़ को हाथ-मुँह धो नाश्ता हुआ । ७ येन् होटल के वास- भोजन तथा डेढ़ पैन् परिचारक गण को पारितोषिक देकर मोटर के अड्डे पर गये। पन्द्रह पैसे देकर ठीक वक्त पर मोटर से रवाना हुए। हमारे नये तीन साथियों में एक डाक्टर, इकेगामी महाशय इंजीनियर, और श्री गो-तो भिक्षु थे। पिछले दोनों सज्जन इंग्लिश बोल लेते हैं। आज की पैदल यात्रा में बहुत आदमी थे । मोटर छोड़ने पर चढ़ाई शुरू हुई । प्रायः घंटे भर चलकर हम क्यु-वन्-वुत्सु के नीचे पहुँचे। यहाँ तीन विचित्राकार पर्वतशिखर हैं, जिन्हें तीन बुद्ध कहते हैं। एक शिखर पर चढ़ने के लिए सीढ़ी और लोहे की जंजीर भी लगी है। कुछ सौ गज़ चढ़कर हम वहाँ पहुँचे। फोटोग्राफर केमरा लिये तैयार था । चारों का फ़ोटो उतरा। ऊपर से दूर तक के हरे तथा पथरीले पहाड़ों की एक झाँकी ली। फिर दूसरी ओर से उतर कर रास्ते पर पहुँचे। अभी चढ़ाई ही चढ़नी थी। चढ़ाई कठिन तो थी, किन्तु सवेरे की
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